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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया--अप्येकः क्षुधितं भिक्षु शुनि दशति लूषकः । तत्र मन्दा विषीदन्ति तेजः स्पृष्टा व पाणिनः ॥८॥ अन्वयार्थः--(अप्पेगे) अप्येकः (लूसए) लूषकः क्रूरः (खुधियं) क्षुधितं बुभुः क्षित मिक्षामटन्तं (भिक्खु) भिक्षुम् (सुनीदंशति शुनी दशति भक्षयति (तत्थ) तत्रवादिभक्षणे (मंदा) मंदा:-अज्ञाः अल्पसत्यतया (विसीयंति) विषीदन्ति= दैन्यं भजन्ते (तेउपुट्ठा) तेजः स्पृष्टा-अग्निना दह्यमानाः (पाणिणोव) पाणिनो. जन्तइइवेति ॥८॥ इसके अनन्तर सूत्रकार वधपरीषह का वर्णन करते हैं'अप्पेगे खुधियं' इत्यादि । शब्दार्थ-'अप्पेगे-अप्येका' यदि कोई 'लूमए-लूषक: क्रूर 'खुधियंक्षुधितम्' भूखे 'भिक्खु-भिक्षुम्' साधु को 'सुणी दंसति-सुनीदशति' कुत्ता काटने लगता है तो 'तस्थ-तत्र' उस समय 'मंदा-मन्दाः' अज्ञ पुरुष 'विसीयंति-विषीदन्ति' इस प्रकार दीनता को पाता है की 'तेउ. पुट्ठा-तेजःस्पृष्टाः' अग्नि के द्वारा स्पर्श किया हुआ 'पाणिणोव-प्राणिनइव' प्राणी घबराता है ॥८॥ ___ अन्वयार्थ--कोई क्रूर कुत्ता आदि प्राणी भूखे (भिक्षा के लिए भ्रमण करते) साधु को काट लेता है । तब कुत्ता आदि के काटने पर मंदसत्व साधु विषाद करता है-दीन बन जाता है, मानों उसे अग्नि का स्पर्श हो गया हो ! ॥८॥ वे सूत्र४२ १५ परीषनु थन ४३ छ-'अप्पेगे खुधियं ध्याह शा---'अप्पेगे-अप्येकः' ने 'लूमए-लूषकः' ४२ 'खुधिय-क्षुधितम्' भूच्या भिक्खु-भिक्षुम्' साधुने 'सुणी दंसति-शुनी दशति' तरे। ४२७॥ मागे तो 'तत्थ-तत्र' ते समये 'मंदा ! -मन्दः' मा ५३५ ‘विसीयंति-विपीदन्ति' या प्रमाणे हीनता युत मानी जय छ । 'तेउपुद्रा-तेजः स्पृष्टाः' अभिना दा॥ २५ शयेर 'पाणिणो व-प्राणिन इव' प्राणी मराय छे. ॥८॥ સૂવાર્થી—ભિક્ષાકાસિને માટે ભ્રમણ કરતા ભૂખ્યા સાધુને કોઈ કઈ વાર કેઈ કુર કૂતરા કરડે છે. આવું બને ત્યારે મન્દસર્વ સાધુ વિષાદ અનુભવે છે. અગ્નિને સ્પર્શ થઈ ગયું હોય એટલું દુઃખ તેને તે વખતે થાય છે. દા For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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