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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ मूलम् - सुतमेयमेवमेगेसिं इत्थीवेदेह हु सुक्खायें । ऍपिता वर्दिता वि अर्जुवा कम्र्मुणा बकरेति ॥२३॥ छाया -- श्रुतमेवदेवमेकेषां खीवेद इति हु स्वाख्यातम् । सूत्रकृताङ्गसूत्रे एवमपि उक्त्वाऽपि अथवा कर्मणा अकुर्वन्ति ॥ २३ ॥ अन्वयार्थः - (एयं) एतत् (पर्व) एप (सु) श्रुतं यत् खीसं महादोषायेति V तथा (एस) एकेषां वैशिकादिकानां (शुक्खायें) स्त्ररूपकथनं (इत्थीवेदे) स्त्रीवेद इति एकेषां स्त्री वेदविदां स्वाख्यातमिति (वा) तात्रिः (पवं वदिताब क्वापि वा अन्य तया (गा अरदि) कर्मणा अपकुर्वन्तीति- विपरीतमाचरन्तीति ॥२३॥ शब्दार्थ - - ' एवं - एम्' इस प्रकार 'सुतं श्रुता स्त्री संपर्क महादोषजनक है ऐसा मैंने सुना है तथा 'एसि-एकेषां कोई कोई का 'सुक्खायं स्वारुपातम्' सम्पर कथन है 'इत्थवेदेह-स्त्रीवेद इति' कामशास्त्र का यह कथन है कि 'ता-ता' स्त्रियः 'एवं वदिता बिएवमुक्त्वापि' अब मैं ऐसा नहीं करूंगी ऐसा कहती है 'अदुवा अथवा ' तो भी 'कम्णा अवकरेति कर्मणा अपकुर्वन्ति' उसले विपरीत आचरण करती हैं ||२३| अन्वयार्थ- हमने ऐसा सुना है कि स्त्रियों का सम्पर्क महान दोष का कारण होता है । किन्हीं वैशिक आदि का ऐसा कहना है कि 'अब मैं इस प्रकार का पाप नहीं करूंगी' ऐसा कह कर भी पुन: विपरीत आचरण करती हैं ||२३ शब्दार्थ-'एवं - एवम्' मा ते 'सुतं श्रुतम् ' सांग हे अर्थात् स्त्रियांना संपर्ड महापापड छे, प्रेम में सांजल्यु' थे, तथा 'एगेनि - एकेषां ' Zu Fidj‘gazari-engaaq' arak za 9. § ‘ar-an' alan “çà वदित्ता वि-एवमुक्त्वा पि' हुवे पाही साम उरीश नहीं' खेवु' उडे छे. 'अदुवाअथवा ' ते 'कम्मुणा अवकरेति कर्मणा अपकुर्वन्ति' से उथनथी मुही क રીતનું આચરણ કરે છે. કા For Private And Personal Use Only સૂત્રા—અમે એવું સાંłખ્યું છે કે સ્ત્રએ સપર્ક મહાન્દોષના કારણ રૂપ બને છે. કોઇ કોઇ સ્રિએ એવુ કહે છે કે હવેથી હું એવુ’ દુષ્કૃત્ય નહી' કરું',' પરન્તુ એવુ' વચન આપ્યા બાદ પણ તેએ વિપરીત આચરણુ જ કરતી રહે છે.
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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