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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir L andutomania - - - सूत्रकृताङ्गमचे यवस्थिताः । ते हि अनुकूलोपसगैः महादयत् क्षोभरहिता भवन्ति । अन्ये तु विष याभिलाषिणो ललनादिपरीषहै जिताः संसारे अङ्गारपतितमीनवद् रागाग्निना देखमाना अवतिष्ठन्ते इति ॥१७॥ ये ललनापरीषहेण पराजिताः तेषां कीदृशं फलं भवतीति दर्शयितु सूत्रकार उपक्रमते-'एए ओघ' इत्यादि। मूलम्-एएं ओघंतरिस्तंति समुदं ववहारिणो। - जत्थ पाणा विसंन्नासि किंचती सर्यकम्मुणा॥१८॥ छाया-एते ओघं तरिष्यन्ति समुद्रं व्यवहारिणः । __यत्र पाणा विषण्णाः सन्तः कुत्यन्ते स्वकर्मणा ॥१८॥ रहते हैं । जो इनसे विपरीत वृत्तिवाले क्षुद्र पुरुष होते हैं विषयों के अभिलाषी और स्त्री परीषह आदि से पराजित होते हैं और परिणामतः भंगार में पडे हुए मीन की तरह संसाररूपी अंगार से जलते रहते हैं॥१७॥ जो स्त्री परीषह से पराजित होते हैं, उन्हें किस प्रकार का फल प्राप्त होता है, यह दिखलाने के लिए सूत्रकार कहते हैं-'एए ओघं' इत्यादि। - शब्दार्थ--'एए-एते' अनुकूल और प्रतिकूल उपसर्गों को जीतने वाले ये पूर्वोक्त संयमी पुरुष 'ओघ-ओघं' चातुर्गतिक संसार को सरिस्संति-तरिष्यन्ति' पार करेंगे जैसे 'समुदं-समुद्रम्' समुद्रको विवहारिणो-व्यवहारिणः' व्यापार करनेवाले वणिकूजन पार करते हैं जत्य-यत्र' जिस संसार में विसन्नासि-विषण्णाः सन्तः' पडे हुए 'पाणाआणा' प्राणी-जीव 'सयकम्मणा-स्वककर्मणा' अपने कर्मों के बलसे किषचंति--कृरयन्ते' पीडित किये जाते हैं ॥१८॥ સમાન સ્થિર રહે છે. પરંતુ જે પુરુષ તેના કરતાં વિપરીત વૃત્તિવાળા હોય છે. તેઓ વિષમાં આસક્ત રહે છે. એવા પુરુષ સ્ત્રી પરીષહ આદિ દ્વારા પરાજિત થાય છે. તેને પરિણામે તેઓ અંગારમાં પડેલ માછલાની માફક સંસારરૂપી અગારા વડે શેકાતા રહે છે. ૧ળા * જે ક્ષક પુરુષ સ્ત્રી પરીષ દ્વારા પરાજિત થાય છે તેમને કેવું ફલ बाग ५3 छ, त सूत्र४२ व ५४८ ४रे छे-.'एए ओघ' त्या हा-'एए-एते' अनुप भने प्रति पनि तपापाजामा yatsत सयभी पु३५ 'ओघं-ओघ' यार तिवाणा ससारने तरिस्संति-तरिष्यन्ति' पा२ ४२२ वी शत 'समुई-समुद्रम्' समुद्रने विवहारिणो-व्यवहारिणः' ध्यापार ४२imagen पा२४२ छ, 'जत्थ-यत्र' संसारमा 'विसन्नासिविषण्णाः सन्तः' ५ 'पाणा-प्राणाः' प्री-७१ 'सयकम्मुणा-स्वकर्मणा' पाताना मीना थी 'किच्चवि-कृत्यन्ते मि ४२१ामा मावे छे. ॥१८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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