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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ.३ ३.३ वादपराजितान्यतीर्थिकधृष्टताप्र० १२९ मूलम् - रागदोसाभिभूयप्पा मिच्छतेण अभिदुता। आउस्ते सरणं जति टणा ईर पायं ॥१८॥ छाया--रागद्वेषाभिभूतात्मानः मिथ्यात्वेन अभिद्रुताः । ____ आक्रोशान् शरणं यान्ति टंकणा इत्र पर्वतम् ।। १८॥ अन्वयार्थ:-(रागदोसामिभूयप्पा) रागद्वेषाभिभूतात्मानः येषामात्मानो रागद्वेषाभ्यामाच्छादिताः (निक उत्तेण अभिदुना) मिथ्यात्वेनाभिद्रुताः विपरीत "एवं बहुगावि मूढा" इत्यादि। इसी प्रकार बडुसंख्यक भी मूढ पुरुष प्रमाणभूत नहीं होते जो संसारगमन में वक्रगति को तथा बन्ध और मोक्ष की गति को नहीं जानते है ॥४॥१७॥ शब्दार्थ--'रागदोसाभिभूयप्पा-रागद्वेषाभिभूतात्मानः' राग और द्वेष से जिनका आत्मा छिपा हुआ है ऐसे तथा 'मिच्छत्तण अभिदुता' मिथ्यात्वेन अभिद्रुताः' मिथ्यात्व से भरे हुए अन्यतीर्थी 'आउसेआक्रोशान्' शास्त्रार्थ से पराजित होने पर असभ्यवचनरूप गाली आदि का 'सरणं जंति-शरण यान्ति' आश्रय ग्रहण करते हैं 'टंकणा- टणा' पहाड़ में रहने वाली म्छेच्छ जाती के लोग युद्ध में हार जाने पर 'पवयं इव-पर्वतम् इव' जैसे पर्वत का आश्रय लेते हैं ।१८।। ___ अन्वयार्थ-जो राग और द्वेष से युक्त हैं, मिथ्यात्व से व्याप्त हैं, वे बाद में पराजित होकर असभ्य भाषणरूप आक्रोश (क्रोध) की _ 'एवं बहुगावि मूढः' त्या એજ પ્રમ ણે જે માણસે સંસારમાં પરિભ્રમ કરાવનાર કર્મબન્ધના સ્વરૂપને જાણતા નથી અને મેશપ્રાપ્તિનો માર્ગ જાણતા નથી એવાં અનેક મૂઢ માણસોનાં વચનને પ્રમાણભૂત માની શકાય નહી (૪) ૧૭ awai - रामदासाभिभूयप्पा-रागद्वेपाभिभूतात्मानः' २२ अने द्वेषयी भना भामा छुपाये छे सेवा तथा 'मिच्छत्तण अभिदता-मिथ्यात्वेन अभिट्टता:' मिथ्यापथी लस ी अन्य तथा 'आउसे-आक्रोशान्' शाखा यथा पति पाथी असल्ययन३५ १७ वगेरेना 'सरणं जंति-शःणंयान्ति' माश्रय ४२ छ 'टंकणा-टणा' ५४ामा २डेवावाणी देनछ तानसी युद्धमा हारी जय त्यारे 'पायं दव-पर्वतम् इव' २वी शत પર્વતને અશ્રય લે છે૧૮ સૂત્રાર્થ—જે લોકો રાગ અને દ્વેષથી યુક્ત હોય છે અને મિથ્યાત્વથી ભરેલા હોય છે, તેઓ વાદમાં પર જિત થવાથી અસભ્ય વચને રૂપ આક્રોશ सू० १७ For Private And Personal Use Only
SR No.020779
Book TitleSutrakritanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages729
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size14 MB
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