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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अध्यायः ४ ] www.kobatirth.org सूतसंहिता | ( अथ चतुर्थोऽध्यायः) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७७ ईश्वर उवाच अथातः संप्रवक्ष्यामि मोचकं पुरुषोत्तम ॥ श्रद्वया च महाभक्त्या विद्धि वेदैकदर्शितम् ॥ १ ॥ पुरा सरस्वती देवी सर्वविद्यालया शुभा ॥ अकारादिक्षकारान्तैर्वर्णैरत्यन्त निर्मलैः ॥ २ ॥ आविर्भूतस्वरूपा श्रीर्ज्ञानमुद्रा केरा परा ॥ अक्षमालाधरा हैमकमण्डलुकराम्बुजा ॥ ३ ॥ सर्वज्ञानमहारत्नकोशपुस्तकधारिणी ॥ कुंदेन्दुसदृशाकारा कुण्डलद्वयमण्डिता ॥ ४ ॥ प्रसन्नवदना दिव्या विचित्रकटकोज्ज्वला ॥ जटाजूटधरा शुद्धा चन्द्रार्धकृतशेखरा ॥ ५ ॥ पुण्डरीकसमासीना नीलग्रीवा त्रिलोचना ॥ सर्वलक्षणसंपूर्णा सर्वाभरणभूषिता ॥ ६ ॥ उपास्यमाना मुनिभिर्देवगन्धर्वराक्षसैः ॥ मामपृच्छदिदं भक्त्या प्रणम्य भुवि दण्डवत् ॥ ७ ॥ यतो मुक्तिस्वरूपतदुपायपरिज्ञानानन्तरं मुक्तिप्रदातरि जिज्ञासा । अतस्तदनन्तरं तत्कथनं प्रतिजानीते - अथात इति । वेदैकदर्शितमिति ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ३ ॥ ४ ॥ ५ ॥ ६ ॥ ७ ॥ अहं च परया युक्तः कृपया पुरुषोत्तम ॥ अवोचं मोचकं देव्यै हितायाखिलदेहिनाम् ॥ ८ ॥ बन्धैहर्तृत्वं विमोचकत्वम् । तदुक्तमुत्तरतापनीये - स्वात्मबन्धहर इति । गर्भोपनिषद्यपि - For Private And Personal Use Only १ ङ. 'करी प' । २ क. घ. 'हर्तृत्वं मो गन्धकर्तृत्वं हि मो । ङ, हर्तृत्वं हि मो । ३ ख. स्वात्माद्दौं ।
SR No.020777
Book TitleSsut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahadev Chimnaji Aapte
PublisherAnand Ashram
Publication Year1893
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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