________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। पञ्चमो परिच्छेओ। // 41 // हत्थी केणगप्पहसंतिओ महाकाओ / मयमत्तो उम्मिट्ठो नीहरिओ ताओ नयराओ॥१३४॥ भजतो गिहदारे उड्डोसेंतो वैरंडए बहुसो / मारितो जणनियरं उच्छोलितो रहे विविहे // 135 / / अह तं कयंतसरिसं उड्डीकयगुरुकरं सुघोरमुहं / दटुं नट्ठो लोओ दिसो- | दिसि मरणभयभीओ॥१३६॥ सोवि हु पंवहणनिवहं भजतो दंतपायघाएहिं / उच्छोलिंतो सुंडाइ हिंडए सबओ तत्थ // 137 // को ऊहलेण गयणे परिडिओ पुलोइउं पयचो सो। चित्तगई मत्तकरि कयंतवयणव दुप्पिच्छं // 138 // एत्थंतरम्मि एगम्मि रहवरे पढम| जोव्वणारंभा। जुवई अणन्नरूवा बहुविहवरभूसणाइमा॥१३९॥ उम्मैग्गपयडेहिं जैच्चतुरंगेहिं हस्थितडेहिं / भग्गम्मि रहे भूमीह निव| डिया विगयजीयव्व // 140 // युग्मम् // नवनीलुप्पलसैच्छहविसाललोलंतलोयणा वरई। संभग्गकन्नकुंडलविलुलियवरकुंतलकलावा // 141 // विच्छिन्नकणयखिखिणि नियरपलबंतमेहलादामा / ईसीसिहारपच्छन्नथणहरा गलियसिरकुसुमा // 142 // विडियअंगयजुयला निवडियकैडया पणडगेविजा / गुणहारवियलियमुत्ताहलसोहियसरीरा // 143 / / संभग्गनेउरर्जुया मुसुमरियरयणमालियानियरा / भूमितललुलियदेहा अह दिहा तेण सा करिणा // 144 // चतसृभिः कलापकम् // तत्तो उज्झियहत्थो तीइ वहट्ठाइ करिवरो कनकप्रभसत्कः कनकप्रभस्वामिकः / 2 उद्ममयन् नाशयन् / 3 वरण्डको भित्तिः / 4 छिंदन् / 5 एकस्या दिशोऽन्यस्यां दिशि / 6 प्रवहण रथः। 7 द्रष्टुं / 8 कृतान्तो यमस्तस्य वदनमिव / 9 दुर्दर्शम् दुरालोकमित्यर्थः। 10 उन्मार्गप्रवृत्तैः विमार्गपतितैः। 11 जच्चो जात्यः / एतवा-प्रस्ताः। 13 सच्छहो सदृशः / 14 खिंखिणी किङ्किणी घण्टिका='घुघरि' इति भाषायाम् / 15 मेखला-कटीसूत्रम् / 10 विघटितं ध्वस्त भादयोः केयूरयोर्युगलं यस्याः स।। 17 कटकं करभूषणम् / 18 प्रैवेयकम् श्रीवाया आभरणम् / 19 त्रुटितो गुणो यस्य स चासौ यो हारस्तस्माद् विगलितैर्मुकाफलैः शोभितशरीरा / 20 | जुय युगम्-युगलमित्यर्थः / 21 मुसुमूरियं भक्तम् त्रुटितम् / 22 अह=असौ। * निरंकुशः / // 4 // For Private and Personal Use Only