________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * 98488**899***** अजिया पुत्त / जीए विलसंतोवि हु अंतं काउं न सत्तो सि // 228 // अविय / जणएण य तुह पुत्तय! अत्थुप्पत्तीए कारणं जं जं। तं सर्व कारवियं किं कजं तुह वणिजेण? // 229 // भणियं धणदेवेणं जावजवि अम्मि! बालओ पुत्तो / ताव नियजणणिसिहिणे करिसंतो लहइ सोहंपि // 230 // वोलीणबालभावो छिप्पैइ पावेण तं करेमाणो। तह पिउलच्छी जणणिन्च होइ सुसमत्थपुत्ताणं // 231 // सुसमत्थो वि हु जो जणयअजियं संपयं निसेवेइ / सो अम्मि ! ताव लोए ममंव उवहासयं लहइ // 232 // इय भणिउं धणदेवो अंसुजलुप्फुण्णलोयणो सहसा / मुक्कलह इह भणंतो पडिओ जणणीए चलणेसु // 233 // तो धणधम्मो सेट्ठी नाउं अवसाण(य)कारणं तस्स / वजरइ पुत्त! को तुज्झ वंछिए कुणइ विग्छति ? 2 // 234 // जणएणं से जणणी पुत्तविओगं अणिच्छमाणीवि / कहकहवि हु संठविया विनायसुयावमाणेण // 235 // एवं सो धणदेवो | मायाविचेहिं अब्भणुनाओ। परदेसगमणजोगं गहिऊण चंउन्विहं भण्डं // 236 / / अट्ठाहियमहिमाओ कारावेत्ता जिणिंदभवणेसु / | संपूइय साहुजणं संमाणिय माणणिजजणं // 237 / / सयलम्मि तम्मि नयरे कारिय आघोसणं जणे मिलिए / नेमित्तियआइढे सुहदिवसे विहियमंगल्ले // 238 / / गहिऊण पवरसउणं अंगीकाउं कुसग्गवरनयरं / हियबंधुवणियसहिओ नीहरिओ निययनयराओ। // 239 / / चतुर्भिः कलापकम् // एवं सो धणदेवो संवाहियसहयजणनियरो। लहुलहुपयाणएहिं वच्चइ सह गरुयसत्येण // 240 // | तत्तोऽणुवासरं सो सत्थो वसिमं अइक्कमेऊण / अह कमसो संपत्तो एक अइभीसणं अडविं // 241 / / जत्थ अदीसंताणवि घणपत्तल 1 शक्तः / 2 अम्ब ! / 3 स्पृश्यते। 4 ममेवोपदास्यताम् / 5 उप्फुण्णं-आपूर्णम् / 6 मुक्कलं उचितं, स्वैरं वा मां कुरुत / 7 मातापितृभ्याम् / 8 चतुविधम् , गणिमधरिममेवपारिच्छेद्यमेदात् / 1 पयो प्रात्तः / 1. वसिम वसतिम् / For Private and Personal Use Only