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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरिअं |चउद्दहमो परिच्छेओ // 117 // // 57 // बहुविहरोगायकेहिं पीडिया निव्वुई न पाविति / धिप्पति जराइ तओ मरेंति तत्तो सुनिचिन्ना // 58 // जइ कइवि हु देवत्तं पाविति तहिपि जायए दुक्खं / ईसाविसायभयसोयलोहसंतत्तचित्ताण / / 59|| पररिद्धि पेच्छंता भिचा विव सामिएण आणत्ता / जायंति चवणसमए देवावि हु दुक्खिया धणियं / / 60 // चुलसीइजोणिलक्खेकसंकुले इह भवे भमंतेहिं / तं नत्थि किंपि ठाणं अणं| तखुत्तो न जं एतं // 61 / / सव्वत्थवि दुक्खत्ता जायंति जिणिंदधम्मपरिहीणा / ता भो देवाणुपिया! करेह जिणदेसिय धम्मं // 2 // | सो दुविगप्पो भणिओ जइधम्मो तह गिहत्थधम्मो य / दुविहस्सवि विन्नेयं सम्मत्तं गुणगणावासं // 63 / / तत्तत्थसद्दहाणं सुहाय| परिणामरूवयं तं तु / जीवाइणो पयत्था तत्तं पुण होइ विनयं // 6 // , जीवाऽजीवापुग्नं पावासवसंवरा य निजरणा / बंधो मुक्खो य तहा तत्ताणि इमाणि नव होति // 65 / / सुहुमा बायर वेइंदिया य तेइंदिया य चउरिंदी / सन्नी अस्सन्नी खलु चोद्दस पजत्तऽप| जत्ता // 66 // धम्माऽधम्माऽऽगासा तियतिय भेया य तहेव कालो य / खंधा देसपएसा परमाणू अजीव चोदसहा // 67 // सायं | उच्चागोयं सत्तैतीसं च नामपगईओ। तिण्णि य आउणि तहा बायालं पुन्नपगडीओ // 38 // नौणंतरायदसगं दसैंण नव मोहपगइ छब्बीसं / नामस्स चउत्तीसं तिण्ह य एकिक पावाउ / / 69 / / इंदिय कसाय अव्वय किरिया पण चउर पण य पणवीसा / जोगा तिन्नेव भवे बायालं आसवो भणिओ // 70 / / समिई गुत्ती धम्मो अणुप्पेहपरीसहा चरित्तं च / सत्तावन्न भेया पणतियभेयाइ संवरणे 1 संतत्तं संतप्तम् / 2 च्यवनमरणम् / 3 चुलसीई-चतुरशीतिः / 4 अणतयुत्तो-अनन्तवारम् / 5 दुःखार्ता / 6 द्विविकल्प:-द्विमेदः / 7 तत्वार्थ| श्रदानम् / 8 उपचैर्गोत्रम् / 5 सप्तत्रिंशत् / १.नामकर्मप्रकृतय इत्यर्थः / 11 द्विचत्वारिंशत् / 12 पगडी प्रकृतिः / 13 ज्ञानावरणाऽन्तरायदशकमित्यर्थः / 14 दर्शनावरणमित्यर्थः / 15 अनुप्रेक्षा भावना / 16 सप्तपश्चाशत् / // 117 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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