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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी | तघणतिमिररुद्धपेरंत / कसिणनिसागासं पिव अपत्तपेरंतसीमाणं // 46 // एवंविहं समुई मझमझेण जाणवतं तं / जा वच्चइ फइवि | को तेरहमो चरिज हु जोयणाणि वेगेण नरनाह ! // 47 // ताव य अनम्मि दिणे कूवयखभगसंनिविद्वेण / निजामएण भणियं पिच्छह अच्छेरयं पु- परिच्छेओ | रिसा ! // 48 // युग्मम् // कोवि हु महाणुभावो अदीणवयणो सुरिंदसमरूवो। बोहाहिं कह समुदं अणोरपारं इमं तरई ? // 49 // // 108 // | तव्वयणं सोऊणं पडिबेर्डयसंगया मए राया / तप्पासे पट्टविया पत्तट्ठा कोलियकुमारा // 50 // गंतूण तेहिं भणिओ सो पुरिसो भद्द! | | इत्थ आरुहसु / धणदेवेणं वणिएणं तुझ पासम्मि पट्टविया // 51 // इय भणिओ आरूढो समागओ ताहि अम्ह बोहित्थे। दिडो | य मए नरवर ! तरुणनरो सो महाभागो॥५२॥ निजियअणंगरूवो पुनिममयलंछणोव्व अइसोमो / वरकणयनिहंसगोरो अहिणव| उद्धितमुहरोमो // 52 // किं बहुणा भणिएणं अणुहरए नरवरिंद ! सो तुम्ह / दिदुम्मि तम्मि दिट्ठी अम्हं सित्तव्य अमएण // 54 // | अहो ! महाणुभावो एसो अणुहरइ मयरकेउस्स / ता होज किं नु एसो जो तइया अडविपडियाए // 55 // कमलावइदेवीए अंकाओ | जायमित्तओ हरिओ। पुव्वविरुद्धसुरेणं केणवि अद्दिवरूवेण // 56 // युग्मम् / / अहवा किं मह इमिणा विचिंतएणेह ताव पुच्छामि। | को कत्थ कह व एसो पडिओ य समुहमज्झम्मि // 57|| इय चिंतिऊण य मए अभंगुब्बट्टणाइयं तस्स / परमायरेण कारिय ||जाविय परमविणएण // 58 // युग्मम् // पुट्ठो सुहासणगओ कह णु तुमं धीर! एत्थ भीमम्मि / रयणायरम्मि पडिओ कत्थ व तुम्हाण आवासो 1 // 59 // ततो य तेण भणियं निसुणसु धणदेव ! वारिजतं / एगग्गमणो होउं एत्थत्थे कोउगं जब ते॥६०॥ घनः मेघः, सान्द्रं च / 2 पेरतो पर्यन्तः / 3 खंभग्ग-स्तम्भारम् / 4 निर्यामक:- नाविकः / 5 बाहा-बाहुः / 6 बेडओ-नौका / 7 निहसो-निकषः / Jokell8 अनुहरते अनुकरोति / // 108 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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