________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org बारहमो परिच्छेओ। अह तत्थ सुवित्थिन्ने पैसत्थवत्थोहविहियउल्लोचे / गंतुं नियवासगिहे पासुत्ता पवरसयणीए // 1 // भणियाओ य सहीओ | बच्चह सव्वाओ निययगेहेसु / मह कुणकुणाइ सीसं सीयंति य सव्वअंगाई // 2 / / जरगहियव सरीरं ता सोविस्सं खणतरं एग / तत्तो | य कुमुइणीए भणियं एवं करेसुत्ति // 3 // ईसि हसिऊण तओ वञ्जरियं सिरिमईए किं भगिणि ! / सहसा जायमसत्थं तुह देहं, कारणं भणसु ? // 4 // भणिय वसतियाए सिरिमइ ! तं चेव वेजयं मुणसि / ता चिंतेसु सयं चिय रोगस्स निदाणमेयस्स / / 5 / / अह | सिरिमईइ मज्झं संधाणाई निएवि सासूयं / भणियं न किंपि ताव य लक्खिाइ बज्झवित्तीए // 6 // अविय / दुविहा संखेवेणं सारीराऽऽगंतुया य रोगत्ति / अह वायपित्तसिंभुब्भवा य, इह आदिमा नेया // 7 // ताणं मखणलंघनिवायसेवाइया चिगिच्छाओ। वेजयसत्थुद्दिट्ठा पुरिसं कालं च नाऊण // 8 // भूयगहचक्खुसागिणिदोसा आगंतुया मुणेयव्वा / hell बलिहोममंतताइया हु विविहा चिगिच्छा सिं // 9 // सारीरियरोगाणं न लक्खणं किंचि दीसइ इमीए / ता नूणं आगंतुयदोसो तकिजई नन्नो // 10 // उत्तारिजउ लोण हकारिजंतु विविहगारुडिया। सरिसवधाओ दिजउ बैज्झउ तह रक्खेंपोट्टलिया // 11 // अह ललियाए भणियं ता किं सिग्धं न कीरए एयं / वाही 'उविक्खिओ जं न होइ इह सुंदरो भद्दे ! // 12 // तो सिरिमइए भणियं प्रशस्तवस्त्रोधविहितविताने; उल्लोचो=वितानम्। 2 पीज्यते / 3 अस्वस्थम् / 4 वैद्यकम् / 5 मुणसि=जानासि। 6 संधानादि संधिप्रभृति, आदिना नाज्यादिकम् / 7 दृष्ट्वा / 8 बाह्यवत्या / 9 वातपित्तश्लेष्मोद्भवाः / 10 प्रक्षणम् अभ्यङ्गः, लङ्घन, निवाओ-स्वेदः। 11 चिकित्साः / 12 एषाम् / 13 लोणं = EI लवणम् / 14 आकार्यन्ताम् / 15 सर्षपघातः। 16 बध्यताम् / 17 पोद्दल वननिबद्ध द्रव्यम् / 18 उपेक्षितः / For Private and Personal Use Only