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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी एगारहमो परिच्छेओ चरिअं // 14 // | // 155 // तह य समाणवयाओ सिणेहसाराओ रायकन्नाओ। नाणाविहचेढाहिं अणुदियहमिमं विणोएंति // 156 / / तहवि हु रई न | पावइ एसा चिंताए सुसइ अणुदियहं / ता मन्ने का चिंता जीए एसा उ परिहाइ // 157 / / जइ ता माउपिऊणं सुमरइ ता किं कहेइ | न हु मज्झ ? / मयणवियारसरिच्छा नेय वियारा तहिं हुति // 158 // एगंतं जह सेवइ विडियचकाई जह य मेल्लेई / पियसंगमसाराओ कहाओ जह सुणइ तच्चित्ता // 159 / / तह मन्ने पेम्मगहो विलसइ एवंविहाहिं चिट्ठाहिं / ता जइ एसा ममं तहट्ठिय साहइ सरूवं // 160 / / ता तस्स पावणम्मिवि कोवि उवाओवि लब्भए नूणं / न य एसा वजरिही पुढावि जहट्टियं मज्झ ॥१६शायुग्मम्।। वामसहावो मयणो अक्खिजतो न पायडो होइ / नाइ आगारेहिं गोविअंतोवि छेएंहिं / / 162 / / तहवि हु लहामि केणवि हंदि ! उवाएण भावमेईए / इय चिंतिय आणत्ता नियचेडी हसिया नाम // 163 / / सुरसुंदरीइ उव्वेवकारणं लहसु हंसिए ! कहवि / तुज्झ समाणवयाए साहिस्सइ हिययसब्भावं // 164 // जं आणवेसि सामिणि ! इय भणिउ हंसिया गया झत्ति / एगंतट्ठियसुरसुंदरीए पासम्मि अल्लीणा / / 165 / / सम्भावनेहसूयगवीसंभैकहाहिं विविहभैणिईहिं / उप्पाइय वीसंभ भणिया सुरसुंदरी तीए // 166 // सुर| सुंदरि! तुह चरियस्स निसुणणे अत्थि कोउगं मज्झ / कह केण किं निमित्तं अवहरिया किंच अणुभूयं // 167 // सुरसुंदरीए भ| णिय ताएणवि आसि पुच्छिया एवं / किं पुण लजाए मए न सकियं तत्थ वारिउं // 168 // किंच। मह चरियं सुम्मत जणेई पासट्ठियाणवि दुक्खं / तेण न वोत्तुं जुत्तं मज्झवि गुरुदुक्खसंजणगं // 169 / / तहवि हु तुमए 1 अनुदिवसम् / 2 विनोदयन्ति विनोद कारयन्ति / 3 परिहाइ-कृशीभवति / 4 विघटित-वियुक्तम् / 5 मिल्लेइ-मुञ्चति / 6 आख्यायमानः-उच्यमानः / 7 पायडो प्रकटः / 8 आकारः इजितैः / 9 गोप्यमानः / 10 छेकः चतुरः / 11 आज्ञप्ता-आदिष्टा / 12 विश्रम्भः विश्वासः / 13 भणितिः-वचनम् / // 94 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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