________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरिअ। // 9 // पिय! कइवयदिवसाई अच्छामि तहिं तु आसमे जाव / ता अन्नदिणे कुलवइ मूले धम्म सुणितीए // 37 // बहुतावसिसहियाए | एगारहमो सहसा आसेण वेगजुत्तेण / अबहरिओ संपत्तो रायसुओ तत्थ एगागी // 38 // युग्मम् // अह अतिहिवच्छलेहिं तावसकुमरेहिं विहि-* | परिच्छेओ यसंमाणो / आगम्म विहियविणओ उवविट्ठो कुलवइ समीवे // 39 / / कुलवइणा सो पुट्ठो को सि तुम आगओ कुओ भद्द! ? / तत्तो| य तेण भणियं कहेमि निसुणेह भयवं! ति // 40 // सिद्भत्थपुरे राया सुग्गीवो नाम आसि विक्खाओ। कणगवई से देवी तीए सुओ सुरहनामो हं // 41 // अइवल्लहोत्ति पिउणा | जुवरायपयम्मि बालभावेवि / अहिसित्तो अवमनिय पुतं जिट्ठ तु सुप्पइ8 // 42 / / अह अन्नया कयाइवि खयवाहीए मयम्मि जण यम्मि / तस्स पए हं राया अहिसित्तो मंतिवग्गेण / / 43 / / जिट्ठस्स अन्नजणणीतणयस्स उ तस्स सुप्पइडस्स / विजाहरेण केणवि कय | उवयारेण दिनाओ॥४४॥ नहगामिणिपमुहाओ विजाओ तप्पभावओ तेण / काऊण य संगाम अहिट्ठियं अप्पणा रजं // 45 // युग्मम्।। तस्स भएण अहंपि हु समागओ पुरवरीए चपाए / जणणिसमेओ पासे मायामहकित्तिधम्मस्स // 46 // तेणवि नियदेसंते दिनं |गामाण सहस्सयं एग / तत्थ य जणणीसहिओ भयवं ! अच्छामि अहयंति // 47 // कइवयदिणेहिं इतो इमाइ अडवीइ वाणियगसत्थो।। मह पुरिसेहि विलुत्तो पत्तं वित्तं तहिं पउरं // 48 // अन्नं च तत्थ पत्ता तुक्खारतुरंगमा बहुविहीया / ताणावाहणहेउं अजेव पभायसम| यम्मि | 49 / / बाहिं नीहरिओ हं कमेण तुरगे ओ जाव वाहेमि / ताविकणं सहसा हरिओ विवरीयसिक्खेण // 50 // युग्मम् / / अविय / जह जह ओक्खचिजह तह तह वेग पगिण्हमाणेण / भयवं! तुरंगमेणं इहाणिओ आसमे तुम्ह // 51 // एवं च जावा // 9 // | साहइ सोसुरहो कुलवइस्स वुत्तं / तुरयमणुमग्गलग्ग ताव य सिन्नपि से पत्तं // 52 // अह भणिय सुरहेणं भयवं ! वच्चामि निययठाणम्मि / आसो अश्वः / 2 अवमत्य-अवगणय्य / 3 इंतो यन्ग च्छन् / 4 विलुप्तः=लुण्ठितः / 5 आकृष्यते / For Private and Personal Use Only