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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरीचरिश्र। // 59 // नीसंकिय एयं // 155 / / एवं विचिंतिऊण समागया ताहि तुझ पासम्मि / मुद्दारयणसमेओ निययकरो दैसिओ ताहे // 156 // तत्तो | सत्तमो पिययम! तुमए मुद्दासहियम्मि दंसिए हत्थे / एसो सो मह दइउत्ति पच्चओ झत्ति उप्पनो // 157 / पेच्छ कह एस एवं काऊणविपरिच्छेओ। विगयसयलआसंको। चिट्ठइ, किं नवि बीहइ नहवाहणरायउत्तस्स ? // 158 // किंचि उवायं ताहिं करेमि एयस्स मोयणढाए / एवं विचिंतिऊणं वंचिय तं सहियणं सई // 159 / / कवडेण मए सामिय! समाणिओ इह असोगवणियाए। तं जं तुमए पुढे तं सव्वं | साहिय एयं // 160 // युग्मम् / / ___अविय / जइवि हु कन्ना पिययम ! सज्झसभरिया न सक्कए कहवि / मणवल्लहस्स पुरओ एकंपि हु वयणमुल्लविउं // 16 // * तहवि मए सविसेसं णियचरियं साहियं इमं जम्हा / जाईसरणगुणेणं परिचिय इव भाससि तुमति // 162 // युग्मम् // भो चित्तवेग! | एवं तीए वयणं निसम्म सहसत्ति / मुच्छाविरमे मज्झवि जाईसरण समुप्पन्न // 163 // संभरियं सव्वंपि हु मएवि पुव्वोइयं निय चरियं / अह तीए संलत्तं पिययम! किं इण्हि कायचं // 164 // तत्तो य मए भणिय वियाणिय कुलहरं तु ते सुयणुता वच्च तुमं गेहं अहमवि ईत्तो पलाइस्सं // 165 // पडिया हु कणगमाला मड्डाए मज्झ एत्थ वावीए / कलयलपुष्वं एवं साहिजसु सयललोयस्स // 166 / / एवं कए न कस्सवि आसंका होइ चित्तवेगम्मि / नहवाहणाओ एवं विमोइओ होइ वरमित्तो // 167 // ___अन्नं च / निसुयं च मए सुंदरि! सुरनंदणपुरवरम्मि आगम्म / जलणप्पहेण पुणरवि अहिट्ठियं निययरजंति // 168 // वडिय *च पुरवरं तं रमा संमाणिओ य पुरलोओ / ता तत्थ अहं गंतुं आणाविस्सामि तुह जणगं // 169 // जलणप्पहोवि राया पेक्खिस्सइ प्रत्ययो विश्वासः / 2 पूर्वोदितम् / 3 इतः / 4 बलात् / 5 श्रुतम् / 6 गृहीतम् / 7 आनाययिष्यामि / // 19 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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