________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरीचरिज। सत्तमो परिच्छेओ। // 58 // अवहारो विहिओ धरणिंदनामेण // 125 / / जलणप्पहस्स सिद्धा रोहिणिनामा किलज विजत्ति / तस्स य भयाउ नट्ठो राया कणगप्पहो ताव // 126 // सिरिगंधवाहणस्स उ खयरप्पहाणस्स सो गओ सरणं। तबिरहे पुरमेयं सयलंपि हु आउलीभूयं // 127 // जलणप्पहभयभीया सम्वेवि हु नायरा पलायति / मोत्तूण इमं नयरं वयंति अवरावरपुरेसु // 128 // ___ एवं च ठिए। अम्हंपि ताय ! इहि विसेसओ होइ नास्त्रियव्वंति / कणगप्पहस्स रनो पवरो मंती जओ ताओ // 129 // |एवं च पुत्तवणणं सोऊणं ताहि असणिवेगेण / आणता नियपुरिसा संजत्तिं कुणह गमणत्थं // 130 // विज्जाए बरविमाण विउँव्वियं ताहिं. मज्झ जणएण। आरोवियं च सव्वं घरसारं तत्थ पुरिसेहिं // 131 // एवं च मज्झ पिययम! धारिणीनामाए साहियं सव्वं / अहमवि तम्मि विमाणे आरूढा परियपेण समं // 132 // तत्तो य तं विमाणं उप्पइयं खग्गसामलं गयणं / वेगेण य संपत्तं गंगावत्तम्मि नयरम्मि // 133 // कणगप्पहस्स रन्नो आवासे तत्थ तं सैमोइन्न / अह गंधवाहणेणवि | उचियपवित्ती कया तस्स // 134 // एवं गंगावते कइवयदिवसाणि जाव अच्छामि / हियएण चिंतयंती पिययम! तुह दसणोवायं // 135 // अविय / पेच्छिस्सं कइय अहं कइया मह तेण संगमो होही। कइया वीवाहदिणं होहीतं कणगमालाए॥१३६॥ एमाइ बहुविगप्पं चिंतेमाणी अहोनिसं तत्थ / रयणीएवि नो निई लहामि तुह नाह ! विरहम्मि।।१३७।। अन्मदिवसम्मि भाया चंपगमालाए मज्झ जणणीए। | अमियगई तत्थ पुरे समागओरायकजेण ॥१३८॥दळूण असणिवेगं अह सो संजायपहरिसो भणइ / सिरिगंधवाहणेणं रमा बहुमाणपुब्वं 1 नागरा: नगरजनाः / 2 तातः। 3 सामग्रीम् / 4 विकुर्वितम् विकृतम् / 5 समवतीर्णम् / // 58 // For Private and Personal Use Only