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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गओ जोचणुम्मत्तो // 187 // हम्मियतलमारूढा हाणुचिना हु वसुमई एसा / गयणट्ठिएण दिवा इमेण सुइरं च निजाया // 188 // दटुं इमीए रूवं खुहियं अह माणसं तु एयस्स / काउं घणवहरूवं अवयरिओ इत्थ गेहम्मि // 189 // अवियाणियपरमत्था भुत्ता अह वसुमई इमेणावि / सुरयम्मि रंजियमणो चिंतइ एवं महापावो // 190 // धणवहरूवेण ठिओ अन्नाओ एत्थ सयललोएण। एईए वरतणूए समयं सेवामि सुरयसुहं // 191 // विजाहरीहिं किंवा मह कजं किंव अनजुबईहिं / सोहग्गनिहाणाए पत्ताए इमाए महिलाए॥१९२॥ एवं विचिंतिऊणं अवहरिओ धणवई इमेणं तु / नेऊण भरहखित्ते मुक्को उ विणीयनयरीए // 193 // पच्छाइय नियरूवं धणवइरूवं विहित्तु विजाए / वसुमइसुरयासत्तो एसो सो चिठई एत्थ // 194 // सोवि हु धणवइवणिओ विणीयनयरीए पाविओ वैरओ / दट्टुं अउन्धनयरि विम्हियहियओ विचितेइ // 195 / / का एसा वरनयरी कत्थ व सा मेहलावई नयरी। किं केण व अव-| हरिओ पेच्छामि व सुमिणयं एवं // 196 / / एवं विचिंतयंतो बाहिं नयरीए जाव परिभमइ / तावय पवरुजाणे समोसढो केवली | दिट्ठो॥१९७॥ सिरिउसहनाहजिणवरवंसपसूओ तिलोयविक्खाओ। नामेण दंडविरओ रोयरिसी मुणिगणसमेओ // 198 // तं दटुं| जायतोसो काऊण पयाहिणं तु तिक्खुत्तो। पणमिय केवलिचलणे उवविट्ठो उचियदेसम्मि // 199 // नाऊण य पत्थावं विहियपणा| मेण तेण संले / केण अहं अवहरिओ भय ! किंवा इमं खित् // 200 // का वा एसा नयरी एवं पुढेण भगवया तस्स / धण| वइणो पुव्वुत्तं सव्वंपि हु साहिंय तइया / / 201 // विनायसरूवो सो भञापिइमाइबंधुपरिहीणो / गुरुसोगसमावन्नो केवलिणा एरिसं| | 1 स्नानोत्तीर्णा / 2 निध्याता दृष्य / 3 अवतीर्णः / 4 अज्ञातः / 5 अपहतः / 6 विनीता अयोध्या / 7 वरओ वराकः / 8 समवसतः आगतः / Iskells राजर्षिः / 1. प्रदक्षिणाम् / 11 त्रि:-त्रिवारम् 12 संलप्तम् उक्तम्-पृष्टमिति यावत् / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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