________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जे सुलसानी गतिए जीतेला ने फांकरनी घूघरीजना शब्दोए तिरस्कार करेला पांखोवाला एवा य पण हंसो, श्रने मदवाला एवा य पण हस्ति अत्यंत लजा पामता बता वनमा जता रह्या. अर्थात् हंसो श्रने हस्ति सुलसानी गतिथी सजा पामीने जा वनमा जता रह्या . एम कवि उत्प्रेक्षा करे .॥६१॥ था लोकमां जे निरंतर जड |
दंसाः संपदा अपि लेऊमाना, अपि प्रकामं समदा गजाच॥ यदीयगत्या विजिता वैनान्यगुस्तर्किता नपुरसंजितेन ॥६॥ वसंति नित्यं जडसंनिधाने, यान्यास्पदं स्युर्मधुपावलीनाम्॥ कथं भेजेतामुपमानमस्याः, कमावमीषामिह "पंकजानाम् ॥६॥ सर्वोपमावस्तुवशंकराणामादाय 'निःशेषविशेषलक्ष्मीः॥
धात्रा कूता नूनमियं तु तेन, निःसाररूपा"इह ते "विनाति ॥ ६३ ॥ (जल)नी पासे वसे जे अने जे जमरनी पंक्तिना स्थान रूप .ए कमलोनी उपमा श्रा सुलसाना बे चरणो केम पामे ? अर्थात् जड पदार्थने विषे रहेलां श्रने जमरोथी कलं कित थएलां कमलोनी उपमा सुखसाना चरणने घटती नथी. ॥ ६ ॥ विधात्रा(ब्रह्मा)
00000000000000000000000000000000000000
For Private and Personal Use Only