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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुलसा० ॥२०८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनेश्वरोना चरण रूप शरण प्रत्ये जा. ॥ २६ ॥ वली जुवनपति, वाणव्यंतर, मनुष्य सर्गणमो. लोक, ज्योतिषी ने वैमानिक देवलोकमां असंख्य शाश्वत एवा चैत्यने विषे रहेलां अरिहंतनां प्रतिबिंबोने जावथी नमस्कार कर ॥ २७ ॥ सिद्धशैल (शत्रुंजय ), श्राबु, गिरनार, कनकाचल ने अष्टापद पर्वतादिकने विषे रहेलां, वली जिनेश्वरनी वे उत्पत्ति वनाधिपवानव्यंतरमनुजज्योतिरमर्त्यभूमिषु ॥ शाश्वतचैत्यसंस्थिताऽई तर्बिवान्यमितानि भवतः ॥ २७ ॥ 'विमलार्बुदरैवताचले, केनकाष्टापदपर्वतादिषु ॥ परास्वपि तीर्थभूमिका स्वपि वेदस्व जिनोभवादिषु ॥ २८ ॥ कर्ममलं विदा 'ये, तपसापुः परमात्मरूपताम् ॥ देश पंच च " बिभ्रतो "निदस्तव "सिद्धाः शरणं नैवंतु "ते ॥ २९ ॥ विगेरे जेमने विषे एवी बीजी पण तीर्थजू मिमां रहेलां एवां पण जिनेश्वरोनां प्रतिबिंबोने | वंदन कर. ||२८|| जे गाढ एवा कर्मना मलने तपथी बालीने परमात्म स्वरूपने पा म्या बे, अने पंदर प्रकारना भेदने धारण करनारा ते सिद्धो व्हारुं शरण था. ॥२॥ For Private and Personal Use Only ॥१००॥
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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