SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥6 ॥ सुखसा० अहिंथी राजगृही नगरी प्रत्ये जाय , तो त्यां त्हारे सुलसाने मल, अने तेने सर्गक्षको. म्हारा वचनथी बोलाववी. अर्थात् तेने म्हारा धर्मलान कहेवा. ॥ ५५ ॥ श्लामि Ma() एम कहीने ए परिव्राजक अंबड, श्राकाशमार्गे थश्ने सुराज्यथी सुशोजित एवा राजगृह नगर प्रत्ये तुरत श्राव्यो. ॥ ५३॥ परी पोताना हृदयमां वीर प्रजुना स्वामीति गदित्वाँसो, परिवाडंबराध्वना ॥ सौराज्यराजितं राजदं सत्वरमाययौ ॥५३॥ अचिंतयत्तत्र गॅतो, वीरवाक्यं हृदि स्मरन् । अहो सोनाग्यमेतस्याः, सुलसाया अपि स्त्रियः॥५४॥ यया 'निजगुणेनोच्चैर्वीतरागोऽपि रंजितः॥ सुरासुरसनामध्ये, पदपातोऽन्यथा कथम् ॥ ५५॥ वाक्यने स्मरण करतो राजगृह नगर प्रत्ये गएलो अंबड, विचार करवा लाग्यो के, अहो ! स्त्री एवी पण था सुलसानुं सौजाग्य आश्चर्यकारी . ॥५४ ॥ कारण के, जे सुलसाए पोताना श्रेष्ठ गुणोए करीने राग द्वेषथी रहित एवा ( जिनेश्वर ) ने पण For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy