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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 00000000000000 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुं, माटे जो तमे मने छती होय तो श्रा रथ उपर चढो. ॥ ७४ ॥ पठी जेटलामां न्हानी व्हेन चिलणा सहित म्होटी व्हेन सुज्येष्ठा, श्रेणिक राजा युक्त एवा रथ उपर बेठी, तेटलामां तेणीए ( सुजेष्टाए) श्रेणिक राजाने कयुं. " हे देव ! हुं म्हारो रत्न अने आभूषणथी नरेलो करंमि मूली गइ ढुं. ॥ ७५ ॥ हे वलन ! ज्यां सुधीमां हुं ज्येष्टिकारो दसौ से चिल्ला, यावत्प्रकृष्टा रँथमीशसंयुतम् ॥ बाण तावन्मं देव विस्मृता, कैरेमिका रेननृता भूषणा ॥ ७५ ॥ नयाम्यहं यावदिमां कैरमिकां विलंव्यतां तावदिदेवं वचन ॥ चिरं गता यावदिर्दे निगद्य सावदन् नृपं तावदेमी सदोगताः ॥ ७६ ॥ विलंबितुं देव चिरं न युज्यते, रिपोर्गृदे संप्रति गम्यते तम् ॥ asia गृहीतचित्रण चाल रौजार्थैरथ स्थितः पथि ॥ 99 ॥ ते म्हारा श्रलंकारोना करं मिश्राने लइने पाठी श्रावुं त्यां सुधी तमे हिंज उजार| हेजो. ' एम कहीने ते गइ अने घणी वार घर पण पानी न यावी. तेटलामां साथे | आवेला सुलसाना पुत्रोए श्रेणिक राजाने कयुं ॥ ७६ ॥ ' हे देव ! हमणां शत्रुना For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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