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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुखसा ॥५॥ ६००००००००००००००००००००००००० (पार्वती) के, हरिप्रिया ( लक्ष्मी ) के, रविवङ्खला (रत्नादेवी) अथवा सरस्वति ले ? सर्गध्यो. गमे ते हो, पण था मानुषी ( मनुष्यनी जातिनी स्त्री) घटती नथी. ॥ २० ॥२१॥ कारण के, जे तिलोत्तमा , ते तो तलना जेटली ज उत्तम वे. श्रथवा जे रति । बे, ते तो कामना बली जवाथी पुःखीत बे, तेम ज जे नागकन्या जे. ते तो निश्चे जलामरी वा वनदेवताथवा,खेदेवता वो देरवल्लनाथवा॥ हरिप्रिया वा रविवल्लनाथवा, सरस्वती वा घंटते नै मानुषी॥२१॥ 'तिलोत्तमा सा तिलमात्रमुत्तमा, स्मरप्रिया सा स्मरदादःखिता ॥ दिजिह्वतांका "किल सादिकन्यका,जलामरी वो के जलेश्वेरीहशी॥२॥ वनेचरी सा वनदेवता पुनः, खदेवतांकाशमुखी सदैव सा॥ हरांगना सौर्धशरीरिणी "किल, हरिप्रिया सा चैपलत्वदृषिता ॥ २३ ॥ बे जीजना चिन्हवाली बे. वली जे जल ( जड) नी मालिक जलदेवता , ते ॥५॥ तो श्रा प्रकारना रूपवाली होय ज क्याथी ? अर्थात् जसदेवता पण आवा खरू-13 पवाली नथी. ॥ २५ ॥ जे वनदेवता , ते तो वनमां फरनारी बे. वली जे श्राकाश-|| 50000००००००००००००००००००००००0000000000 ००००० For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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