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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुखसा० ॥ ५२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हो ! गाया विनाना ने अत्यंत जीवोधी व्याप्त एवा नदीना अने तलावना जलने सर्ग४यो. | विषे निरंतर स्नान करनारा श्रने गेरुथी रंगेलां रातां वस्त्रोने धारण करनारा जलशू | करोना हृदयमां ते दया क्यांथी होय ? अर्थात् नज होय. ॥ ११ ॥ श्रालोकने विषे जो के, श्रा शरीर जलना कोडो घडाथी धोइए अने माटीवडे घसीए, तो पण निरं गालिते जीवसमाकुले नृशं, नंदीतटाकांनसि मैकतां सदा ॥ दया कुतः सा जेलपोत्रिणामैहो, कषायरक्तांबरधारिणां हृदि ॥ ११ ॥ ईदं शरीरं जलकुंनकोटिनिर्निमज्यते यद्यपि घृष्यते मृदा ॥ तथापि नीतवती निर्मल, सदा सुरानामनिवार्चितं मैलैः ॥ १२ ॥ जैलैरनेकैरपिष्टमांतर, शरीरिणां शुध्यति "नैव कर्हिचित् ॥ प्रभूततीर्थस्नपितापि तुंबिका, कंदुत्वमौ यथा प्रियार्पिता ॥ १३ ॥ | तर मलथी लिंपायला मद्यना पात्रनी पेठे अंदर शुद्ध यतुं नयी ॥ १२ ॥ जेम घणां तीर्थने विषे स्नान करावेली ने स्वामी अर्पण करेली अर्थात् मिष्ट जलथी सिंचन | करेली एवी तुंबडी पोतानी कडवाशने त्याग करती नथी, तेम प्राणीउनुं दुष्ट ( अप For Private and Personal Use Only 11 42 11
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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