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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना सुदर्शन मुनि का जैन परम्परा में स्थान प्रस्तुत ग्रन्थ-रचना का विषय है सुदर्शन मुनिके चरित्रका वर्णन । ये मुनि जन परम्परामें महावीर तीर्थंकरके पांचवें अन्तकृत् केवलो माने गये हैं। ( ३, ३) इन मुनियोंकी यह विशेषता है कि वे घोर तपस्या कर एवं नाना उपसर्गोको सहन कर उसी भवमें केवलज्ञान द्वारा संसारकी जन्म-मरण परम्पराका अन्त करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। ऐसे मनियोंके चरित्र जैन द्वादशांग आगमके आठवें अंग अन्तकृत्-दशांगमें संकलित किये गये थे। उनके संकेत वर्तमान अर्धमागधी आगममें भी पाये जाते हैं। नमोकार मन्त्र का महत्त्व प्रस्तुत काव्यका विशेष धार्मिक उद्देश्य है सुदर्शन मुनिके चरित्र द्वारा जनधर्मके महामन्त्र पंच नमोकार मन्त्रकी महिमा प्रदर्शित करना। इसी कारण ग्रन्थके सभी अधिकारोंकी पुष्पिकाओंमें उसे पंचनमस्कार माहात्म्य प्रदर्शक कहा गया है । पंच नमोकार मन्त्र जैनधर्मका प्राण है । उसका जैनधर्ममें वही स्थान है जो वैदिक परम्परामें गायत्री मन्त्रका है। जैनियोंके सभी सम्प्रदायों में इसकी समान रूपसे मान्यता है । जप व पूजा-पाठ आदि क्रियाओंमें इस मन्त्र को प्रथम स्थान दिया जाता है । इसका संक्षिप्त रूप खारवेलके शिलालेख ( ई० पू० द्वितीय शती ) में तथा पुष्पदंत कृत षट्खण्डागमसुत्रके आदि मंगलके रूपमें पाया जाता है । ( ई० द्वितीय शती )। और उसपर वीरसेनकृत विस्तृत टीका भी है। इस मन्त्रके आधारपर कैसो कैसो मान्त्रिक और तान्त्रिक मान्यताएँ विकसित हुई हैं, इनका विवरण पंडित नेमिचन्द्र जैन कृत 'मंगल मन्त्र नमोकार-एक अनुचिन्तन' शीर्षक ग्रन्थमें देखा जा सकता है । ग्रन्थमें सुदर्शन मुनिके पांच भवान्तरोंका उल्लेख है। १. भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित For Private And Personal Use Only
SR No.020765
Book TitleSudarshan Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi, Hiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1970
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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