SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा- सगिहं ॥५७०॥ नीसेसमंतिसामंतमंडलं पुच्छिऊण सच्छमई । सिरिअमरसेणकुमरं रजे अहिसिंचए तुट्ठो ॥५७१॥ तो रयणत्तयचरियम्मि 18 नरसुंदरराया कइवयसामंतमंतिमाइजुओ। विहिणा गिण्हइ दिक्खं ससिप्पहाऽऽयरियपयमूले ॥५७२॥ जयं चरे जयं 81 स्सरूवप्प१९६॥ 16 चिट्ठे जयमासे जयं सए । जयं भुंजतो भासंतो पावकम्मं न बंधइ ॥५७३॥ इय आगमुत्तविहिणा सो कुणमाणो उ सयल- रूवग नाम किरियाओ। गुरुबालवुडसेहाइयाण कज्जे पयहतो ॥५७४॥ कमसो गुरुप्पसाया सुयपारावारपारगो जाओ। गुरुणा गुण- दसमुद्देसो। द्रगणकलिउ त्ति जाणि नियपए ठविओ॥५७५॥ मिच्छत्ततिमिरमंडलसंहरणपरायणो दिणमणिब । अविरइरयणिविवक्खो पडिबोहइ भवियकमलाई ॥५७६॥ निफाइऊण सीसे वरसीसं नियपयम्मि ठविऊणं । अंते काउमणसणं पत्तो सबट्टसिद्धम्मि ॥५७७॥ तत्तो चविय विदेहे नरजम्मं लहिय सुद्धचरणं च । नरसुंदरनिवजीवो धुयकम्मो पाविही मुक्खं ॥५७८॥ एवं मिच्छत्तफलं अण्णयवइरेगओ समक्खायं । भद्दे ! तस्स सरूवं अवसेसं संपयं सुणसु ॥५७९॥ मिच्छत्तमभवाणं अणाइअणंतयं मुणेयवं । भवाणं पि अणाईसपज्जवसियं च सम्मत्ते ॥५८०॥ पंचाणुत्तरतित्थयरतुरियगुणठाणगाइ मुत्तु जिए। ववहारऽववहाराण होइ सवेसि मिच्छत्तं ॥५८१॥ ( किंच-भटेण चारित्ताउ सुट्ठयरं दंसणं गहेअवं । सिझंति चरणरहिया दंसणरहिया न सिझंति ॥५८२॥ अरिहं देवो गुरुणो सुसाहुणो जिणपरूवियं तत्तं । एयं चिय सम्मत्तं विवरीयं होइ मिच्छत्तं ॥५८३॥ एवं संखेवेणं सुदरिसणे! दसणं समक्खायं । इण्डिं चरित्तरयणं निसुणसु रयणत्तयप्पवरं ॥५८४॥ चिरसंचियकम्मचयस्स रित्तकरणाओ होइ ॥९ ॥ १ सेह० शैक्ष-नव-दीक्षितसाधु । २ निष्पादयित्वा । ३ अन्वयव्यतिरेकतः । । SAYSAYAN SAYANG For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy