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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है और उसके लिये संसार में कैसी कैसी खटपटे चलती है और संसार में हमको कीस तरह रहना चाहीए यह सब ग्रन्थकर्त्ताने बतलाने की जीतनी कोशीश की है उसके साथ साथ संसारकी एसी खटपटों से-प्रपंचजालों से · मायाजालसे बचने के लिये अल्प आयुष्यी भव्य जीवों को तर जानेके लिये बोधप्रद उपदेश भी समयोचित दीया है। __ वीरमती नामका एक स्त्री पात्र स्त्री अबला नहीं, लेकिन समय आने सबला बन सकती है और जब अपने सत्य स्वरूपमें आती है तब मनमुताबिक पासे रचकर इच्छा मुताबिक कार्य कर सकती है यह आजकी हमारी कमजोर डरपोक-ब्हेन-बेटीआं-माता को शीखलाती है। - ग्रन्थ हाथमें लेने के बाद शायत ही छोड़नेका मन होता है। फीरभी विशेषता यह है कि चाय वहांसे पढने से रस पेदा होता है और कुतहल जागता है कि क्या हुआ ? आगे क्या होगा ? क्या आवेगा ? एसी उत्पन्न आकांक्षा को पूर्ण करने में पढनेवाला ओत प्रोत हो जाता है और किताब खतम करके खडे होनेका मन होता है। ___ क्राउन आठ पेजी साइज ५०० पृष्ट का दलदार ग्रन्थ पक्का रेशमी कपड़े का बाईन्डींग होने पर भी प्रचार के खातीर फक्त मूल्य ४) चार रूपीये रखे गये है। मंगाइए, आजही मंगाईए---- For Private And Personal Use Only
SR No.020761
Book TitleStavan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutlal Mohanlal Sanghvi
PublisherSambhavnath Jain Pustakalay
Publication Year1939
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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