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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में खामी पड़ेगी ॥ तुम्हें ।। हरि कवीन्द्र की यही विनती है। मुक्ति नगरिया दिखानी पड़ेगी ॥ तुम्हें ।। गायन नं. ९३ ( तर्ज-सर्व तीर्थ में मोटा तीर्थ श्री शत्रुजय प्यारा रे ) संभवदेव जिनंदा प्यारा, है मन मोहनगारा रे । दोषों का संभव नहीं प्रभु में, पूर्ण गुण भंडारा रे ॥ संभव ॥१॥ अनंत रूप अनंत चतुष्टय, पुनरपि अठ प्रतिहारा रे । चौसठ सुरेन्द्र पूजित प्रभु के, अमर नमें चरणारा रे ॥ २ ॥ सकल देव शिर मुगटमणि, जिन चौतिस अतिशय वारा रे । पुत्र रत्न सेनाराणी के, जितारी कुल शृंगारा रे ॥ ३ ॥ फलोदी सरदारपुरा में, दर्शन किया सुखकारा रे । लूनावत कीसनलाल बनाया, मन्दिर और धर्मशाला रे ॥ ४ ॥ साल नियाशी मगसर शुद में । एकादशी गुरुवारा रे । सर्व धातमय मूर्ति स्थापन, महोत्सव हुआ अपारा रे ।। ५ ।। उपधान तप कराया सूरिने, धन्य धन्य करनेवारा रे ॥ गुणसुन्दर संभवजिन दर्शन, ज्ञान सुधारस धारा रे॥ ६ ॥ गायन नं. ९४ (तर्ज-कमलीवाले की) जिनमत का डंका आलम में बजवा दिया शिवपुरवालेने । जिनवाणी का अमृत आलम में वर्षा दिये सिवपुरवालेने ॥ टेर ॥ जो श्रीमुख से फरमाया था, गणधरने उसको गूंथ लिया, कहा सार चीज नवकार रहो फरमाया शिवपुरवालेने ॥ १ ॥ अज्ञान vvvvvvvvvvvvvvvv (५८) स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only
SR No.020761
Book TitleStavan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutlal Mohanlal Sanghvi
PublisherSambhavnath Jain Pustakalay
Publication Year1939
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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