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अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताआचार्या जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायकाः ॥ श्रीसिद्धान्तपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः ।
पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलं छे प्रतिमा मनोहारिणी दुःखहरी, श्री वीरजिणंदनी | भक्तो छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चंदनी ॥ आ प्रतिमाना गुणभाव धरीने, जे माणसो गाय छे । पामी सघलां सुख ते जगतमां, मुक्ति भणी जाय छे ॥ ७ ॥ श्री जगनायक, तुं धणी महा मोटा महाराज |
मोटे पुन्ये पामीयो, तुम दरसन में आज आज मनोरथ सब फले, प्रगटे पुण्य कल्लोल । पाप करम दूरे टलीया, नाटा दुःख डंडोल प्रभु दरसन सुखसम्पदा, प्रभु दरसन नवनिद्धि । प्रभु दरसनथी पामीर, सकल पदारथ सिद्धि
भावे जिनवर पूजिये, भावे दीजे दान |
भावे भावना भावीए, भावे केवलज्ञान जीवडा ! जिनवर पूजीए, पूजाना फल होय । राजा नमे प्रजा नमे आण न लोपे कोय
जगमें तीर्थ दोय बड़ा, शत्रुंजय गिरनार । एक गढ रीखव समोसर्या, एक गढ़ नेमकुंवार
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चंदराजानो रास (गुजराती) कि. ४-०-०
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