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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदा जो ले सरन तेरा प्रभु ।। टेर ।। लाख चौरासीने घेरा कर्मने मारा मुझे । ले बचा अब तो साहारा है मुझे तेरा प्रभु ।। है जगत० ॥१॥ सैकडो को तारते हो मेहर की करके नजर । क्यों नहीं तारो मुझे है ? क्या गुनाह मेरा प्रभु ॥ २ ॥ है जगत० ॥ हाल जो तन का हुआ है आप बिन किस से कहुं ? । मोह राजाने मुझे चारो तरफ धेरा प्रभु ॥ है जगत० ॥ ३ ॥ आपसे हरदम तिलक की येही तो अरदास है ॥ आप के चरणों में मेरा रहे सदा डेरा प्रभु ॥ ४ ॥ गायन नं. २९ ( तर्ज-गालीकी ) मंदिर नगर फलोदी रलियामणा रे, प्रभु पारसनाथ सुहावणा रे ॥ टेर ॥ पोस वदि दसमी दिवसे जाया, जन्म आधिरात का पाया। माता भोमादे हुल राया, अश्वसेन घर हरख वधामणा रे ॥ मंदिर० ॥१॥ जिनजी को नील वरण छ नीको निलवट सोहे केसर टिको । मुखडो चन्द्रवदन जिनजी को, भवि तुम दरसन कर सुख पावणारे ॥ २ ॥ जिनजीकी मूरति मोहनगारी, लागे भवि जीवन को पियारी । गुण जस गावत है नर नारी, मारी आवागमन निवारणा रे ॥३॥ मस्तक मुकुट सोहे अतिभारी, काना कुंडल की छबी न्यारी । मैं तो जाऊं बलिहारी थारी, मने भवसागरथी तारणा रे ॥४॥ अर्जी एक इन्द्रचन्द्र की धारो, लागो चित्त चरणो में मारो। मारी मनरा कारज सारो, मारी विनतडी अवधारणा रे ॥५॥ स्थापनाजी किं. ०-०-३ ( २७ ) For Private And Personal Use Only
SR No.020761
Book TitleStavan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutlal Mohanlal Sanghvi
PublisherSambhavnath Jain Pustakalay
Publication Year1939
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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