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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीया, अहि लंछन जास ॥ १ ॥ अश्वसेन सुत सुखकरु, नव हाथनी काया । काशीदेश वाणारसी, पुण्ये प्रभु आया ॥ २ ॥ एक सो वर्ष, आउखुं ए, पाली पार्श्वकुमार । पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार ॥ ३ ॥ श्री महावीरजिन चैत्यवंदन (५) सिद्धारथसुत वंदीए, त्रिशलानो जायो । क्षत्रियकुंडमां अवतर्यो, सुर पति गायो ॥१॥ मृगपति लंछन पाउले, सात हाथनी काय । बहोंतेर वर्षनुं आउ, वीर जिनेश्वरराय ॥२॥ खीमाविजय जिनराजनो ए, उत्तम गुण अवदात । सात बोलथी वर्णव्यो, पद्मविजय विख्यात ॥ ३ ॥ श्री चोवीश जिनका चैत्यवंदन (६) पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, दोय राता कहीए । चंद्रप्रभु ने सुविधिनाथ, दो उज्वल लहीए ॥ १ ॥ मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला नीरख्या । मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दो अंजन सरिखा ।। २॥ सोले जिन कंचन समाए, एवा जिन चोवीश । धीरविमल पंडिततणो, ज्ञानविमल कहे शिष्य ॥ ३ ॥ श्री आदिजिनेश्वर चैत्यवंदन (७) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे। भाव धरीने जे चडे, तेने भवपार उतारे ॥ १ ॥ अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीर्थनो राय । पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय ॥२॥ (८) महासती सुरसुन्दरी किं. ४-८-० For Private And Personal Use Only
SR No.020761
Book TitleStavan Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutlal Mohanlal Sanghvi
PublisherSambhavnath Jain Pustakalay
Publication Year1939
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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