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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाय छे यावत् भगवती पूज्या मरुदेवी मातानी माफक सर्व दुःखोनो अंत करे छे. आ चोथी अंतक्रिया (४). ( सू० २३५ ) टीकार्थ :- आ (चोथा) उद्देशकनो आ प्रमाणे संबंध छे. पूर्वना (त्रीजा) उद्देशकना छेल्ला सूत्रमां कर्मना चय बिगेरे वर्णल छे. अहं पण कर्म अथवा तेना कार्यभूत भवनो अंत करवानी क्रिया कहेवाय छे. अथवा में सांभळ्युं छे के आयुष्मान् भगवाने आ प्रमाणे कहेलं, तेथी तेमनावडे जे कहेवायेलं ते कधुं तेमज वळी आ बीजुं जे तेमणे ज कहेलं ते पण कहेवाय छे, माटे आवा प्रकारना आ संबंधी व्याख्या कराय छे. अंतक्रिया एटले भवनो अंत करवो. तेमां ( चार प्रकारनी अंतक्रियामां ) जेने तथाविध तप नथी, तथाविध परीषद विगेरेथी उपजती वेदना ( पीडा ) पण नथी, परन्तु लांबा काळना दीक्षापर्यायवडे सिद्धि थाय छे ते पहेली अंतक्रिया होय. १. जेने तथाविध तप अने वेदना छे अने थोडा कालना प्रव्रज्यापर्यायवडे सिद्धि थाय तेने बीजी अंतक्रिया होय. २. जेने उत्कृष्ट तप अने वेदना (होय छे ) अने दीर्घ दीक्षापर्यायवडे सिद्धि थाय छे तेने श्रीजी अंतक्रिया होय छे. ३. वळी जेने तथाप्रकारनुं तप अने वेदना नथी अने अल्प पर्याय ( थोडा समयनी प्रव्रज्या ) वडे सिद्धि थाय छे तेने चोथी अंतक्रिया होय छे. ४. अंतक्रियानी एकस्वरूपता होवा छतां पण साधनना भेदथी चार प्रकाररूप छे. आ सामुदायिक अर्थ समजवो. अवयव (प्रत्येक शब्द) नो अर्थ नीचे प्रमाणे जाणवो-भगवाने चार अंतक्रिया कहेली छे, एम जणाय छे-प्राप्त थाय छे. 'तत्रे'ति० अहिं निरधारण-चोकस करवाना अर्थमां सप्तमी विभक्ति छे, ते चारना मध्यमां एवो एनो अर्थ छे. 'खलु' शब्द वाक्यालंकारमां छे. आ, तरत ज कहेवामां आवनार होवाथी साक्षात्रूप पहेली, बीजानी अपेक्षाए आद्य, अंतक्रिया, अहिं कोईक पुरुष, देवलोकादिने विषे जईने, त्यांथी अल्प-थोडा साधनभूत कर्मोबडे प्रत्यायात - मनुष्यत्व फरीथी जे पाम्यो ते अल्पकर्मप्रत्यायात, For Private and Personal Use Only ***** **************************************
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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