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श्रीस्थानागपत्र मानुवाद ॥५५०॥
तथा उदय श्रेष्ठ छे. (२) फाल्गुन मासमां रूक्ष (लू) अने आकरो पवन, स्निग्ध अने सजल वादळाओ, असंपूर्ण कुंडालाओ तथा कपिल अने ताम्रवर्णवाळो रवि शुभ छे. (३) चैत्र मासमां पवन, वादळा वृष्टिपूक्त तथा कुंडाळाओ सहित गर्भो शुभ छे अने वैशाख मासमां वादळा, पवन, पाणी, वीजळी अने गर्जनावडे गभी हितने माटे थाय छे. (४)" मासना भेदवडे सूत्रकार ग ने ज बतावे छ 'माहे' इत्यादि (मूळमांनो) श्लोक (मू० ३७६ ) गर्भना अधिकारथी नारी संबंधी गर्भसूत्र कहेल छे ते स्पष्ट छे. मात्र 'इत्थित्ताए' त्ति स्त्रीपगाए 'विम्बम्'-गर्भनुं प्रतिबिंब अर्थात् गर्भनी आकृतिरूप आतेव-रुधिरना परिणाम; परंतु गर्भस्वरूप नहिं ज. कथु छ के-"वायुवडे अस्थित( स्थिर ) थल स्त्रीना रक्तने अजाण लोको गर्भ कहे छ केमके गर्भाकृति जणाय छे. वली कटुक, तीक्ष्ण अने उष्ण खोराकाडे केवल रक्तमोज परिणाम थाय छ एम पण श्रुतमां कहेल छे. (१) "जड पुरुषो भूतवडे हरण करायेल गर्भने कहे छे इत्यादि. गर्भ विचित्रपणुं कारणना भेदथी छे ते वे श्लोकाडे कहे छ 'अप्प' मित्यादि. शुक्र-पुरुष संबंधी वीर्य, ओज-आर्तव एटले गर्भाशयमा स्त्री संबंधी रक्त. तथा स्त्रीना ओजबडे समायोग-वायुना वशथी तेनुं स्थिर थवं. उक्त लक्षग स्वीना ओजनो सनायोग थपे छते गर्भाशयमां विंच उत्पन्न थाय छे. बीजाओए पण आ विषयमा कयु छ के-“आ हेतुथी ज शुकना बाहुल्पथी पुरुष थाय छे, रक्तनी बहुलताथी स्त्री थाय छे. वली शुक्र अने रक्तनी समानताथी नपुंसक थाय छे. (१) वावडे शुक्र अने शोणित अत्यंत भिन्न थये छते यथायोग्य बहु संतति थाय छे. विकृति पामेल मळोवडे वियोनि-गीत्पत्तिने अयोग्य अने विकृत आकारवाळा गर्भाशयो थाय छे. (२)" (म० ३७७) गर्भ प्राणीओनो जन्मविशेष छे, ते उत्पाद कहेवाय छे, अने उत्पाद, उत्पाद नामना पूर्वने विषे विस्तारपूर्वक
४ स्थान काध्ययचे उद्देशः ४ उदकगर्भः मनुष्यगर्भ
श्च मू० ३७६-७७
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3॥५५०॥
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