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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Koxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx रोगनी पीडाथी थयेल शोकरूप आतध्यानना लक्षणो छे. कयुं छे के तस्सकंदणसोयण-परिदेवणताडणाई लिंगाई । इटाणिद्ववियोगा-वियोगवियणानिमित्ताई ॥१०॥ । प्रायः उक्तार्थ छे. अन्य निदानना अने बीजाओना लक्षणो कहे छे. कयु छ केनिंदइ निययकयाइं, पसंसइ सविम्हओ विभूईओ। पत्थेइ तासु रजइ, तयजणपरायण होइ ॥११॥ पोताना करेला कार्यना अल्प फळोने निंदे छे, बीजानी विभूतिओने आश्चर्य सहित प्रशंसे छे, प्रार्थना करे छे अने प्राप्त | थयेल ऋद्धिओमां रागवाळो थाय छे. वळी तेने मेळववामा तत्पर थाय छे. * हवे रौद्रध्यानना भेदो कहेवाय छे-हिंसा एटले विविध वधबंधनादिवडे प्राणीओने पीडा प्रत्ये अनुबध्नाति-निरंतर प्रवृत्त करे छे एवा स्वभाववाल्लं जे प्रणिधान-दृढ अध्यवसाय अथवा हिंसानो अनुबंध छे जेमा ते हिंसानुबंधी रौद्रध्यान, आ प्रक्रम छे. कड्युं छे केसत्तवहवेहबंधण-डहणंकणमारणाइपणिहाणं। अइकोहग्गहगत्थं, णिग्घिणमणसोऽहमविवागं ॥१२॥ __ प्राणीओनो वध करवो, वींधवं, बंधन, बाळg, अंकन-चिह्न करवु (आंकवु) अने मार विगेरेमा अति क्रोधरूप ग्रहथी ग्रहण करायेल जे दृढ अध्यवसायरूप रौद्रध्यान निर्दय मनवाळाने होय छे अने ते अधम (नरकादि) फलवाडं थाय छे. तथा मृषा-पिशुन, असभ्य, असद्भूत (अछतुं) विगरे वचनना भेदोवडे असत्यना अनुबंधने करनार जे ध्यान ते xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx) For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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