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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भीस्था नाश सूत्र बालुवाद ।। ५३० www.kobatirth.org करवावडे परिग्रह संज्ञा थाय छे. (५) ( सू० ३५६ ) संज्ञाओ ज कामगोचर छे माटे कामनुं निरूपण करतुं सूत्र स्पष्ट छे, विशेष ए के - कामा-शब्दादि विषयो छे. देवोने शृंगाररूप काम छे, केमके एकांतिक अने आत्यंतिक मनोज्ञपणाने लईने अत्यंत रतिरसनुं स्थान होवाथी रतिरूप ज शृंगार छे. कयुं छे के - " अन्योन्य आसक्त थयेल पुरुष अने स्त्री संबंधी रतिस्वभाव - व्यवहार ते शृंगार " मनुष्योने करुण काम होय छे कारण के तुच्छपणाथी, क्षणमां जोयेलनुं नष्ट थवावडे अने शुक्र, शोणित विगेरेथी थयेल देहना आश्रितपणाए शोचनात्मक होवाथी तथाप्रकारतुं मनोज्ञपणुं नथी होतुं, "करुणः शोकप्रकृति " रिति वचनात् करुण रस शोकस्वभाव ज छे, तिचोने विभत्स काम होय छे, केमके ते जुगुप्सानुं स्थान होय छे. कछे के - " भवति जुगुप्साप्रकृतिर्वीभत्सः " बीभत्सरस जुगुप्सात्मक ज छे. नैरयिकोने अत्यंत अनिष्टपणाए क्रोधनो उत्पादक होवाथी रौद्र-दारुण काम होय छे. कयुं छे के-" रौद्रः क्रोधप्रकृति " रिति रौद्र रस ज क्रोधरूप छे. ( सू० ३७५ ) आ कामो तुच्छ अने गंभीरना बाधक, साधक छे, माटे तुच्छने तथा गंभीरने कहेवाने इच्छता सूत्रकार दृष्टांत सहित आठ सूत्रोने कहे छे चत्तारि उदगा पं० तं०-उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदए, गंभीरे णाममेगे गंभीरोदए १, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं - उत्त नाममेगे उत्ताहिदए, उत्ताने नाममेगे गंभीरहिदए ४ (२) चत्तारि उदगा पं० तं० - उत्ताणे णा For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ************* ******** ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः ४ उदको दधिसमपुरुषाः सू० ३५८ ५३० ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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