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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र खानुवाद ॥५२३॥ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx असुरी साथे संवास करे छे. (२) चार प्रकारनो संवास कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक देव देवी साथे संवास करे छे २ कोईक देव राक्षसी-व्यंतरी साथे संवास करे छे, ३ कोईक राक्षस देवी साथे संवास करे छे अने ४ कोईक राक्षस राक्षमी साथे संवास करे छे. (३) चार प्रकारनो संवास कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक देव देवी साथे संवास करे छे. २ कोईक देव मनुष्यणी साथे संवास करे छे, ३ कोईक मनुष्य देवी साथे संवास करे छे अने ४ कोईक मनुष्य मनुष्यणी साथे संवास करे छे. (४) चार प्रकारनो संवास कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक असुर असुरी साथे संवास करे छ, २ कोईक असुर राक्षसी साथे संवास करे छ, ३ कोईक राक्षस असुरी साथ संवास कर छे अने ४ कोईक राक्षस राक्षसी साथे संवास करे छे. (५) चार प्रकारनो संवास कहल छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक असुर असुरी साथे संवास सेवे छे, २ कोईक असुर मनुष्यणी साथे संवास सेवे छे, ३ कोईक मनुष्य असुरी साथे संवास सेवे छ अने ४ कोईक मनुष्य मनुष्यणी साथे संवास सेवे छे. (६) चार प्रकारनो संवास कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक राक्षस राक्षसी साथे संवास सेवे छ, २ कोईक राक्षस मनुष्यणी साथे संवास सेवे छ, ३ कोईक मनुष्य राक्षसी साथे संवास सेवे छे अने ४ कोईक मनुष्य मनुष्यणी साथे संवास सेवे छे. (७) (सू० ३५३) चार प्रकारे अपध्वंस-(चारित्रना फळनो विनाश) कहल छे, ते आ प्रमाणे-१ आसुरीभावनाजन्य ते आसुर, २ अभियोगभावनाजन्य ते आभियोग, ३ संमोहभावनाजन्य ते संमोह अने ४ देवकिल्बिष भावनाजन्य ते देवकिल्विष अपध्वंस. चार कारणवडे जीवो असुरपणानुं आयुष्कादि कर्म करे छे, ते आ प्रमाणे-१ क्रोधी स्वभाववडे, २ कलह करवाना स्वभाववडे, ३ आहारादिमां आसक्ति सहित तप करवावडे अने ४ निमित्तादि प्रकाशीने आजीविका चलाववा ४ स्थान. काभ्ययने उद्देशः४ संवादः आसुराभियोग्याद्याः सू०३५३ ५४ Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx ॥ ५२३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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