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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XxxxxxxxxxxxxxXXXXXXXXXXXXXXXOXOM कईक शुभ क्रियावालो होवाथी लोकोवंडे श्रेष्ठ तुल्य मनाय छे. २ कोईक पुरुष भावथी श्रेष्ठ छे पण लोकोबडे पापी मनाय छेकारण वशात् असदनुष्टानवाळो होबाथी, ३ कोईक भावथी पापी छ पण कंईक सारं अनुष्ठान करतो होबाथी लोकोवडे श्रेष्ठ तुल्य मनाय छे अने ४ कोईक भावथी पापी छे अने लोकोबडे पण पापी मनाय छे. (४) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक पुरुष प्रवचननो आख्यायक-प्ररूपक छे पण शासननो प्रभावक नथी केम के ते उदार क्रिया रहित छे, २ कोईक पुरुष शासननो प्रभावक छ पण प्रवचननो प्ररूपक नथी, ३ कोईक प्ररूपक छे अने प्रभावक पण छे अने ४ कोईक प्ररूपक नथी अने प्रभावक पण नथी. (५) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक पुरुष सूत्रार्थनो प्ररूपक छे पण शुद्ध एषणामां तत्पर नथी, २ कोईक शुद्ध एषणामां तत्पर छ पण शुद्ध प्ररूपक नथी, ३ कोईक शुद्ध प्ररूपक अने | शुद्ध एषणामां तत्पर छ अने ४ कोईक शुद्ध प्ररूपक नथी तेम शुद्ध एपणामां तत्पर पण नथी. (६) चार प्रकारे वृक्षनी विकणा कहेली छे, ते आ प्रमाणे-प्रबाल(नवा अंकुर)पणाए, पत्रपणाए, फूलपणाए अने फलपणाए. (सू०३४४) टीकार्थ:-'चउविहे ' त्यादि सुगम छे. विशेष ए के-वायु छे निदान जे रोगर्नु ते वातिक, एम सर्वत्र जाणवू. विशेष ए के-*बे दोष अथवा त्रण दोषनो संयोग ते सन्निपात. वायु विगेरेनुं स्वरूप आ प्रमाणे-'वायु-१ रुक्ष, २ लघुहलको, ३ गीत, ४ कर्कश, ५ सूक्ष्म अने ६ गतिवाळो छे. पित्त-१ स्नेहल( चीकगुं), २ तीक्ष्ण, ३ उष्ण, ४ लघु, ५ काचा मांसना गंध जेवू, ६ फेलाई जनारुं अने ७ प्रवाही छे. (१) कफ-१ भारी, २ अत्यंत ठंडो, ३ स्निग्ध-अतिशय * वात अने पित्त, वात अने कफ, पित्त अने कफ ए द्विदोष सन्निपात अने वात, पित्त अने कफ त्रणेनो मिलाप ते त्रिदोष सन्निपात. x Kxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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