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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानागपूत्र सानुवाद ॥ १९२॥ ४ स्थानक्यध्ययने उदेश:३ आहरण भेदा: सू०३३८ KXxxxxxxxxxxxXXXXXXXXXXXXXXXX आ गाथानो अर्थ उपर जणावेल छे 'वारेयब्वो उवाएणं'–उपायवडे गुरुए, शिष्यने आसक्तिथी वारवा योग्य छ अथवा आत्मा आकाशनी जेम अमूर्तपणाथी अकर्ता छे. आवी रीते आत्माने अकर्तृत्वनी प्राप्तिरूप दक्षण उत्पन्न थये छते तेना विनाशने माटे कहेवाय छआत्मा कथंचित् मृतपणाथी देवदत्तनी माफक कर्ता ज छे. आहरणता अने तेना भेदोर्नु देशवडे अने दोषवचपणाए उपनयन्यायना जभावी आहरण- व्याख्यान कयु २. हवे आहरणतद्देश कहेवाय छे, ते चार प्रकारे छ-१ अनुशासन ते अनुशास्ति अर्थात् सद्गुणोना उत्कीर्तनवडे प्रशंसा करवा योग्य छ, आ प्रकारे जेमा उपदेशाय छे ते अनुशास्ति. जेम गुणवान् पुरुषो प्रशंसा करवा योग्य होय छे. जेमके-साधुना नेत्रमा पडेल रजकणने दूर करवावडे लोकोद्वारा शीलमा शंका थवाथी ते कलंकने प्रक्षालन-दर करवा माटे आराधना करायेल देववडे सहायवाळी, चालणीवडे भरेल पाणीने छांटवाथी उघाडेल छे चंपापुरीना त्रण दरवाजा जेणीए एवी जे सुभद्रा, 'अहो शीलवती' एम महाजन लोकवडे प्रशंसायेली छे. कयुं छे केआहरणं तद्देसे, चउहा अणुसहि तह उवालंभो। पुच्छा निस्सावयणं होइ सुभद्दाऽणुसट्ठीए ॥१९०॥ १ अनुशास्ति, २ उपालंभ, ३ पृच्छा अने ४ निश्रावचन-आ चार प्रकारे आहरणतद्देश छे. अनुशास्ति(प्रशंसा)मा सुभद्रानुं दृष्टांत छ. साहुक्कारपुरोयं, जह सा अणुसासिया पुरजणेणं। वेयावच्चाईसुवि, एव जयंतेववूहेज्जा ॥ १९१ ॥ oxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxOK) ॥ ४९२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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