SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानागसत्र सानुवाद ॥३४५॥ kxxxXKKKKKXXXXXXXXXXXXxxxxxxxx) कारण छे केम के वि वेदनाथी पराभव पामेल आववा माटे समर्थ नथी. अब विगेरे नरकपालोवडे वारंवार दबायो थको ४ ४ स्थान(नारक), मनुष्यलोकमां आववाने इच्छे, आ आगमननी इच्छानुं बीजुं कारण (२) अने आवबामां अशक्तिर्नु ए ज कारण छे, काध्ययने केम के तेओवडे अत्यंत दबायेल होवाथी आववाने अशक्त छे. तथा नरकभूमिमां जे अनुभवाय छे अथवा नरकभूमिने उद्देशः १ योग्य जे वेदनीय ते निरयवेदनीय अत्यंत अशुभ नामकर्म विगेरे अथवा असातावेदनीय, ते कर्मस्थितिवडे क्षीण न थये छते, अग्रवीजादि अनुभाग-विपाकवडे अनुभव न थये उते, जीवना प्रदेशोथी दूर न थये छते, मनुष्य लोक प्रत्ये आववानी इच्छा करे परंतु नारकागमः आवी शके नहि. अवश्य वेदवा योग्य कर्मरूप निगड( बेडी)बडे बंधायेल होवाथी आववाने असमर्थमां ए ज कारण छे (३), संघाटयः तथा 'एव' मिति. 'अहुणोववन्ने' इत्यादि अभिलाप-कथन सारी रीते सूचन करवा माटे छे. नरकनुं आयुष्यकर्म क्षीण न थये छते यावत् शब्दथी' अवेइए' इत्यादि पाठ जोयो (४), निगमन (निचोड) करता थका कहे छे-'इच्चेएहिं' सू० २४४ति० आ चार प्रकारना प्रत्यक्ष कारणोवडे हमणां ज कहेवायु. (सू० २४५) हमणां ज नारकर्नु स्वरूप कह्यु, नारको असंयमने सहायक परिग्रहथी उत्पन्न थाय छे माटे तेना विपक्षीभूत (संयमने सहायक) परिग्रहविशेषने चार स्थानकमां अवतारता थका कहे हे-'कप्पंती'त्यादि. कल्पे छे-युक्त छे, ग्रंथथी-बंधना हेतुभूत सुवर्ण विगरेथी अने मिथ्यात्वादिथी निर्गत-मुक्त थयेली निग्रंथीओ-साध्वीओ, तेणीओने संघाटीआ उत्तरीय(वस्त्र)विशेष-पछेडीओ स्वीकारवामां, पहेरवा माटे, बे हाथनो विस्तार-पहोळाई छे जेणीनो ते बे हाथवाळी 'कल्पते ' आ क्रियापदनी अपेक्षाए संघाटीओनुं कर्त्तापणुं छे, 'एग दुहत्यवित्यारं, एगं चउहत्यवित्थारं' ति. अहिं प्रथम विभक्तिना अर्थमां प्राकृतपणाथी बीजी ४॥३४५॥ RXXXXXXXXxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy