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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्थानाङ्गमत्र सानुवाद ॥१८५॥ ४ स्थानकाभ्ययने उद्देश ३ आहरणभेदाः सू. KI ३३८ F पडिनिभे, हेतू ५, हेऊ चउठिवहे पं० २०-जावते थावते वंसते लूसते, अथवा हेऊ चउव्विहे पं० । तं०-पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, आगमे, अहवा हेऊ चउबिहे पं० तं०-अस्थित्तं अस्थि सो हेऊ १, अत्थित्तं णत्थि सो हेऊ २, णत्थित्तं अस्थि सो हेऊ ३, णत्थित्तं णत्थि सो हेऊ ४ ।सू० ३३८ मलार्थ:-चार प्रकारे ज्ञात-दृष्टांत कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ आहरण-जेनावडे व्याप्तिथी अप्रसिद्ध अर्थने प्रतीतिमां लवाय छे, जेम ब्रह्मदत्तनी माफक करेलु पाप दुःखने माटे थाय छे एम कहेवू ते, २ देशआहरण-जम आ स्त्रीचें मुख चंद्र सदृश छे एम कहे ते, अहिं चंद्रनी सौम्यतारूप देशर्नु समानपणुं छे, ३ दोष सहित आहरण-जेम कोईक बुद्धिमान ईश्वरादिवडे करायेलुं आ जगत छ -घटपटादिनी माफक कहेवू ते, ४ उपन्यासोपनय-कोईक वादी पोताना पक्षy स्थापन करे छे अने ए स्थापेल पक्षने दूर करवा माटे प्रतिवादीए आपेलं दृष्टांत, जेम वादीए कह्यु के-आत्मा आकाशनी जेम अमृर्च होवाथी अकर्ता छ, तेनुं निराकरण करवा माटे कहेवू के-एम आकाशनी माफक आत्मा अभोक्ता पण थशे. (१), आहरण चार प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ अपाय-अनर्थ-ते द्रव्यथा, क्षेत्रथी, काळथी अने भावथी एम चार प्रकारे छे. तेनां उदाहरणो कहेवा ते, २ उपाय-पुरुषना व्यापाररूप साधनवडे कार्यनी निष्पत्ति थाय छे ते, तेना द्रव्यादि भेदथी उदाहरणो कहेवा, ३ जे दृष्टांतद्वारा अन्यना मतने दूषण आपीने स्वमतनी स्थापना कराय छे ते स्थापनाकर्म, पुंडरीक अध्ययननी माफक अने ४ तत्काल उत्पन्न थयेल वस्तुनो विनाश, ते दृष्टांतनुं निरूपण करवा माटे ज्यां होय छे ते प्रत्युत्पन्न XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX KXxxxxxxxxxxx ४८५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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