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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शरीरवाळा, अन्यतर अनशन विगेरे कोई पण तपमांथी एक, उदार-आशंसा विगेरे दोषना अभावने लईने उदारचित्तयुक्त, ' कल्याणानि '-- मंगलस्वरूप होवाथी, 'विपुल' घणा दिन पर्यंत करवाथी, प्रयत- उत्कृष्ट संयम युक्त होवाथी, प्रगृहितआदर युक्त स्वीकारेल होवाथी, महानुभाग- अत्यंत शक्ति युक्त होवाथी, समृद्ध - ऋद्धिविशेषना कारणभूत होवाथी, कर्मक्षयना कारणभूत मोक्षना साधक होवाथी, तपकर्म-तपरूप क्रियानो आश्रय करे छे किमंग पुणकिम् ' प्रश्नना अर्थमां छे' अंग शब्द आमंत्रण - संबोधनना अर्थमां अथवा अलंकारमां छे. पुनः शब्द पूर्वोक्त शब्दथी भिन्न अर्थने देखा - वामां छे. शिरनो लोच अने ब्रह्मचर्यादिनो स्वीकार करवामां थयेल ते आभ्युपगमिकी जेनावडे आयुष्यनो उपक्रम (घटाडो) थाय ते उपक्रम ज्वर अने अतिसार विगेरे व्याधिओमां थयेल ते औपक्रमिकी, एवी आभ्युपगमिकी अने औपक्रमिकी ते वेदना - दुःख तेनी उत्पत्तिमां सन्मुख जवावडे हुं सहन करूं ' सहि ' धातु सन्मुख अर्थमां छे, जेम आसुभट ते सुभटने सहन करे छे अर्थात् तेथी भागतो नथी. पोताने विषे अथवा परने विषे क्रोध विना क्षमा करूं, अदीनपणावडे तितिक्षा करूं, अत्यंत स्वस्थतावडे ते ज वेदनामां हुं रहूं-अध्यासन करूं अथवा 'सहामि ' विगेरे चारे शब्दो एकार्थवाळा छे. ' किं मन्ने 'त्ति० 'मन्ये' शब्द निपात छे ते वितर्क अर्थवाळो छे. 'क्रियते ' थाय छे. अर्थात् भुं थाय छे ? ' एगंतसो ' ति० एकांतेसर्वथा. [ वेदना सहन नह करनाराओने एकांते पाप थाय छे अने सहन करनाराओने एकांते निर्जरा थाय छे ] ( सू० ३२५) दुःखशय्यावाळा निर्गुण अंनं सुखशय्यावाळा गुणवाळा छे आ कारणथी निर्गुण अने सद्गुणविशिष्टोने अवाचनीयत्व अने वाचनीयत्वाने माटे सूत्रद्वय कहे छे जे सुगम छे. विशेष ए के - ' वीयइ' ति० विकृति - दूध विगेरे, For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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