SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyarmandie भीस्था नाङ्गपत्र मानुवाद ॥४६४॥ Xxxxxxxxx हव्वमागच्छित्तते ४ । सू० ३२३ ४ स्थान मूलार्थ:-चार प्रकारना श्रावको कहेला छे, ते आ प्रमागे-१ कोईक श्रावक मातापिता समानछे-साधुने एकांत हितकारी काध्ययने छे, २ भाई समान-मातापिताधी ओछा स्नेहवाळो होईने शिखामग आपवा माटे साधुने निष्ठुर वचन कहे परंतु कार्यना प्रसंगमा | उद्देशः३ वात्सल्यभक्ति करे छे, ३ मित्र समान-साधुए कोई प्रसंगने लईने कठोर वचन कहेल होय तेयी प्रीतिनो क्षय धवाथी आप मातापित्रात्तिमां साधुनी उपेक्षा करे छे अने ४ सपत्नी (शोक) समान-साधुओना केवळ छिद्रने ज जोनारो होय छे. वळी चार प्रकारना दिसमाःश्राश्रावको कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ आदर्श ( आरीसा ) समान-साधु जे स्वरूप कहे ते हृदयमा स्वीकारे, २ पताका समान- काः, वीरविचित्र देशनावडे अस्थिर मनघाळो, ३ स्थाणु समान-गीतार्थथी पण समजावी न शकाय तेयो कदाग्रही अन ४ खरकंटक समान- श्रावकदेवशिखामण आपनार साधुने दुवेचनरूप कांटाथी वींधनारो. (मू० ३२१) श्रमण भगवान् महावीरस्वामीना दश आवकोनी त्वं, देवागसौधर्म देवलोकमां अरुणाभ विमानने विषे चार पल्योपमनी स्थिति कहेली छे. (मू० ३२२ ) चार कारणोबडे देवलोकमां xमानागमतत्काल उत्पन्न थयेल देव मनुष्यलोकमां शीघ्र आववा माटे इच्छे परंतु आरवाने समर्थ न थाय, ते आ प्रमाणे-१ देवलोकमां | कारणानि तत्काळ उत्पन्न थयेल देव, दिव्य कामभोगने विषे मूञ्छित थयेल, गृद्ध थयल, ग्रथित-बंधायल अने आसक्त थयेल एवो ते देव सू०३२१मनुष्य संबंधी कामभोगमा आदरवाळो थतो नथी, वस्तुभूत-साररूप मानतो नथी, एनुं मने प्रयोजन नथी, एम निश्चय करे छे अने ३२३ 'मने मळो' एम निया| करतो नथी अर्थात् मनुष्यविषयक कामभोगोमां हूं रहुं एम विचारतो नथी, २ देवलोकमा तत्काल उत्पन्न ४६४॥ KO XXXXX) For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy