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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥। ४४० ॥ www.kobatirth.org पर्वतो पासे कृष्णादि इंद्राणीओनी क्रमशः राजधानीओ छे, तेमां दक्षिण विभागरूप लोकार्द्धनो नायक शकेंद्र होवाथी अनि अने नैऋतकोणमा रहेल में रतिकर पर्वतो पासे शक्रेंद्रनी इंद्राणीओनी राजधानीओ छे. उत्तर विभागरूप लोकार्द्धनो स्वामी ईशानेंद्र होवाथी वायव्य अने ईशानकोणमां रहेल ते पर्वतांनी पासे ईशानेंद्रनी इंद्राणीओनी राजधानीओ छे. एमज नंदीश्वर द्वीपमां अंजनक पर्वत पर चार अने दधिमुख पर्वतो पर सोळ मळीने चीश जिनालयो छे. आ जिनालयोमां चातुर्मासिक प्रतिपदाओने विषे, सांवत्सरिकोने विषे अने बीजा घणा तीर्थकरना जन्म ( कल्याणक ) विगेरेना प्रसंगरूप देवकार्योंमां समुदाय सहित देवो अष्टाह्निका (अट्ठाई) महोत्सवो करता थका सुखपूर्वक विचरे छे, एम जीवाभिगम सूत्रमां कयुं छे. बीजा पण तथाप्रकारना सिद्धायतनो होय तो विरोध जेतुं नथी. विजयनगरीमां जेम सिद्धायतनो छे तेम कहेल राजधानीओमां पण सिद्धायतनो संभवे छे. वळी पंचदशस्थानोद्धार नामना ग्रंथमां कहां छे के-सोलसदहिमुहसेला, कुंदा मलसंख चंदसंकासा । कणयनिभा बत्तीसं, रइकरगिरि बाहिरा तेसिं ॥ १५० ॥ सोळ दधिमुख पर्वतो श्वेत मचकुंद पुष्प, निर्मळ शंख अने चंद्र सदृश घोळा छे. तेनी बहार वे बे वावडीओनी वचमां बहारना वे कोणनी नजीकमां सुवर्णनी कांति जेवा वे बे रतिकर पर्वतो छे. सर्व मळीने बत्रीश रतिकर पर्वतो छे. अंजणगाइगिरीणं, णाणामणिपज्जलंतसिहरेसु । बावन्नं जिणणिलया, मणिरयणसहस्स कूडवरा ॥१५९॥ अंजनक विगेरे पर्वतोना विविध मणिओवडे कांतिवाळा शिखरोने विषे बावन जिनगृहो छे, ते मणिरत्नमय हजार योजन For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ स्थान काध्ययने उद्देशः २ नन्दीश्वरा धिकारः सू० ३०७ ॥ ४४० ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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