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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie श्रीस्थानास्त्र सानुवाद ॥४३८॥४ तेवढे कोडिसयं, चउरासीइं च सयसहस्साइं । नंदीसरवरदीवे, विक्खंभो चक्कवालेणं ॥ १४३॥ ४ स्थानएक अबज, सठ क्रोड अने चोराशी लाख योजन नंदीश्वर द्वीपर्नु चक्रवाल विष्कम छे. काभ्ययने मध्यरूपदेशभाग-देशनो अवयव ते मध्यदेशभाग. ते खास मध्यभाग नहि, प्रदेश विगरेनी चोकस गणनावडे नक्की उद्देशः २ करेल नथी, परंतु प्रायः बहुमध्यदेशभाग छे. अथवा अत्यंतमध्यदेशभाग ते बहुमध्यदेशभाग जाणवो. अहि अंजनक नन्दीश्वरापर्वतो मूल(भूतळ)मा दश हजार योजन पहोला छे एम कड्यु, अने द्वीपसागरप्रज्ञप्तिनी संग्रहणीमां तो कहलुं छे के धिकारः चुलसीति सहस्साई, उविद्धा ओगया सहस्समहे।धरणितले विच्छिन्ना यऊणगाते दससहस्सा॥१४४० ३०७ चोराशी हजार योजन ऊंचा, एक हजार योजन भूमिमां ऊंडा अने कंईक न्यून दश हजार योजनना भूमितलमा पहोळा छे. नव चेव सहस्साइं,पंचेव य होंति जोयणसयाई। अंजणगपव्वयाणं मूलम्मि उ होइ विक्खंभो॥१४५४ ___ अंजनक पर्वतोनुं मूल-जमीनना अंदरना भागरूप कंदमां साडानव हजार योजननी पहीलाई छे. नव चेव सहस्साई,चत्तारि य होंति जोयणसयाई। अंजणगपव्वयाणं धरणियले होइ विक्खंभो॥१४६॥ अंजनक पर्वतोनी भूमितल-सपाटीमां नव हजार ने चार सो योजननी पहोळाई छे. आ मतांतर जाणवो. एवी रीते बीजे स्थले पण छे. ते मतांतरोना कारणो केवलीगम्य छे ‘गोपुच्छसंठाण' त्ति० ॥ ४३८॥ xxxxxxxxxxxxxxxxxx KXxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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