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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्थानासूत्र खानुवाद ॥ ४२९ ॥ www.kobatirth.org आ चार द्वारोमां द्वारना नामवाळा, एक पल्योपमनी स्थितिवाळा, घणा देवोना परिवारवाळा अने देवीओ सहित महर्द्धिक देवो वसे छे. 'चूल्लहिमवंतस्स ' ति० महाहिमवाननी अपेक्षाए नानो हिमवान, पूर्व अने पश्चिमना भागने विषे तेनी दरेकनी वे वे शाखा छे माटे कहे छे-' चउसु विदिसासु ' ईशानकोण विगेरे विदिशाओ मां लवणसमुद्रने त्रण सो त्रण सो योजन उल्लंघीने* जे शाखा (दाढा) रूप विभागो वर्षे हे 'एत्थ'त्ति० आ शाखाविभागाने विषे अंतरे समुद्रना मध्यमां द्वीपो अथवा अंतर - परस्पर विभागप्रधान द्वीपो ते अंतरद्वीपो तेमां ईशानकोणमां एकोरुक नामनो द्वीप त्रण सो योजननो लांबो अने पहाळो छे. एम ज अग्निकोणमां आभाषिक, नैऋतकोणमां वैषाणिक अने वायव्यकोणमां लांगलिक द्वीप छे. समुदायनी अपेक्षाए चार छे, परंतु एक एक विभागमां चार चार नथी. अतः क्रमवडे द्वीपो यांजवा योग्य छे. द्वीपना नामथी पुरुषोना नामो छे. ते पुरुषो तो सर्व अंगोपांगवडे सुंदर अने जोवामां स्वरूपथी मनोहर छे, परंतु एकोरुक विगेरे नथी अर्थात् एक उरुवाळा विगेरे नथी. आ द्वीपोथी ज चारसो योजन उल्लंघीने प्रत्येक विदिशाए चार सो योजनना लांबा पहोळा चार द्वीपो छे. एम ज जे द्वीपोनुं ( बीजा चार द्वीपोनुं ) जेटलं अंतर छे तेटलं तेओनुं लंबाई-पहोळाईनं प्रमाण छे. यावत् चारे विदिशाओना सातमा अंतरद्वीपोनुं नव सो योजन अंतर छे, अने तेटलं ज तेओनुं लंबाई - पोळाईनुं प्रमाण छे. धा मळीने अंतरद्वीपो अख्यावशि छे. आ द्वीपोना मनुष्यो जोडले जन्मे छे. पल्योपमना असंख्यात भागविशिष्ट आयुष्यवाळा ** अवगाह्य' आ पदनुं द्विकर्मकत्व होवाथी कमेमां सप्तमीना अर्थमां द्वितीया छे. अहिं द्विकर्मक धातुगणमां जो के 'शाहू' धातु नथी परंतु द्विकर्मकगण पठित धातुना अर्थना निबंधनथी द्विकर्मक छे. आ चिह्नवाको पाठ बाबुवाळी प्रतिमां छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः २ द्वीपद्वाराणि अन्तरद्वीपाः पातालकलशाः धात कीविष्कं भादिः सू० ३०३ ३०६ ।।। ४२९ ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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