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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ********* ****** www.kobatirth.org संबंध, सूत्रमात्र थी बांधल लोहनी शलाका ( शली )ना संबंधरूप उपमात्राळं जाणवुं तेनो जे उक्तार्थरूप उपाय ते बंधनोपक्रम. अथवा भिन्न भिन्न अवस्थामा रहल कर्म( कार्य )नुं बंधनरूप करवु ते ज उपक्रम अर्थात् वस्तुना संस्काररूप बंधनोपक्रमः केम के वस्तुना संस्कार अने विनाशरूप उपक्रम पण कट्टेल छे, एम ज बीजा उपक्रम संबंधी जाणवुं विशेष ए के कर्मना फलानो काळ नहिं प्राप्त थया छतां [ तेने ] उदयमां लाववो ते उदीरणा कहेवाय. कां छे के जं करणेणोकड्डिय, उदर दिजइ उदीरणा एसा । पगईटिइअनुभाग-प्पएसमूलुत्तरविभागा ॥९६॥ योगसंज्ञक वीर्यवडे कपाय सहित अथवा कपाय रहित जीव, जे परमाणुओबाळु दलिक, उदद्यावलिकानी उपरनी स्थितिथी आपने, उदयावलिकामां प्रवेश करावे ते उदीरणा कहवाय छे. ते प्रकृति, स्थिति, अनुभाग अने प्रदेश एम चार प्रकारे छे. वळी ते प्रत्येक मूळ अने उत्तरभेदना विभागवाळा छे. तथा उदय, उदीरणाकरण, निधत्तकरण अने निकाचना करणना अयोग्यपणाए कर्मनुं अवस्थापन ते उपशमना कहेवाय. कं छेके - " ओवणवण, संकमणाई च तिन्नि करणाई " उद्वर्त्तन ( स्थिति अने रसनी वृद्धि करवा रूप), अपवर्तन( स्थिति अने रसनी हानि करवारूप ) अने संक्रमण ( परप्रकृतिमां प्रक्षेपवारूप ) आ त्रण करणो (देश) उपशमनामां होय . तथा विविधप्रकार-सता, उदय, क्षय, क्षयोपशम, उद्वर्तन अने अपवर्तन विगेरे स्वरूपवडे कर्मोनुं, पर्वत उपरथी पडती * देशउपशमनानो विशेष विस्तार अत्यारे उपलब्ध नथी, सर्वउपशमनानो विस्तार कम्मपयडोमां प्रसिद्ध छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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