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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीस्था नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥। ४१२ ॥ ******* www.kobatirth.org प्यना लोहीमां कृमि उपजे छे तेना रसथी मिश्रित रंगवडे जे वस्त्र रंगाय हे ते कृमिरागरक्त, कादवथी खरडायेल वस्त्र ते कर्द्दमरागरक्त, दीपक विगेरेना मेलथी खरडायेल वस्त्र ते खंजनरागरक्त अने हलदरना रंगथी रंगित वस्त्र ते हरिद्रारागरक्त. ए दृष्टांते चार प्रकारनो लोभ कहेल छे, ते आ प्रमाणे- कृमिरागरक्त वस्त्र समान ते अनंतानुबंधी, कई मरागरक्त वस्त्र समान ते अप्रत्याख्यानावरणी, खंजनरागरक्त वस्त्र समान ते प्रत्याख्यानावरणी अने हरिद्रारागरक्त वस्त्र समान ते संज्वलनी लोभ. कृमिरागरक्त वस्त्र समान लोभमां प्रविष्ट जीव काल करे तो नैरयिकोमां उत्पन्न थाय छे यावत् हरिद्रारागरक्त वस्त्र समान लोभमा प्रविष्ट जीव काल करे छे तो देवोमां उत्पन्न थाय छे. ( सू० २९३ ) टीकार्थ:-' चत्तारी 'त्यादि० प्रगट छे, विशेष ए के- केतन - सामान्यथी वक्र. वस्तु अथवा पुष्पना करंडीआ संबंधी मूठमां ग्रहण करवानुं स्थान वांस विगेरेना खंडवाळं ते पण वक्र होय छे, परंतु अहिं सामान्यथी वस्तुनुं वक्रत्व (वांकापर्णु) 'केतन' शब्दवडे ग्रहण कराय छे. तेमां वांसना मूलरूप जे केतन ते वंशीमूलकेतन, एवी रीते सर्वत्र समज. विशेष ए के मेंढविषाण-घेटानुं शींगडुं, गोमूत्रिका तो प्रसिद्ध छे. 'अवलेहणिय'त्ति० छोलायेली वांसनी सळी विगेरेनी जे पातळी छाल ते अवलेखनिका. वंशीमूल विगेरेना वक्रनी समान मायानुं वक्रपथुं तो मायावाळाना असरल - वक्रपणाना भेदथी छे, ते आ प्रमाणे- जेम वनुं मूल अत्यंत गुप्त वक्र छे एवी रीते कोईक जीवनी माया पण अत्यंत गुप्त वक्र छे, एवी रीते अल्प, अल्पतर ( तेथी थोडी ) अने अल्पतम ( तेथी पण थोडी ) असरलतावडे अन्य माया पण विचारवी आ चारे माया अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरणी, प्रत्याख्यानावरणी अने संज्वलनीरूपे अनुक्रमे जाणवी. अन्य आचार्यो कहे छे के प्रत्येक अनंता For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः २ केतनादि सू० २९३ ॥ ४१२ ॥
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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