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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir भीस्थानानपत्र सानुवाद ॥४०९॥ Xxxxxxxxxx त्रण सूत्रो सुगम छे. विशेष ए के-तमसा-अप्कायना परिणामरूप अंधकारनो काय-समूह ते तमस्काय, जे असंख्याततम ४ स्थान अरुणवर नामना द्वीपनी बहारनी वेदिकाना अंतथी अरुणोद नामना समुद्रमां बेंतालीश हजार योजन पर्यंत अवगाहीने (जईने) काध्ययने पाणीना उपरना भागथी एक प्रदेशवाळी श्रेणीवडे तमस्काय नीकळीने, सत्तरसो एकवीश योजन सुधी ऊंचो जईने, त्यांथी तिच्छों-विशेष विस्तार पामतो थको, सौधर्मादि चार देवलोकने घेरीने ऊंचे पण ब्रह्मलोक कल्पना रिष्ट नामना विमान-प्रतर उद्देशः २ सुधी पहोंचेल छे. तेना नामो ए ज नामधेयो छे. 'तम' इति० तमोरूप होबाथी अथवा रूपने बताववामां तमः कहल छे. निर्गन्ध्या मात्र तमस्वरूपने कहेनारा पहेला चार नामो विकल्पमा छे अर्थात् 'तम' ना पर्यायवाचक छे. वळी वीजा ज चार नामो * सहालापादि अत्यंत तमस्वरूपने बतावनारा छे. लोकमां ए ज अंधकार छे, एवो बीजो नथी माटे 'लोकांधकार ' कहेल छे. देवोने पण तमस्कायः ए ज अंधकार छे केम के देवोना शरीरनी प्रभानो पण त्या प्रकाश पडतो नथी माटे देवांधकार कहेल छे. आ कारणथी ज -सू० २९०बलवान देवोना भयथी देवो तमस्कायमा नाशी जाय छे-संताई जाय छे एम संभळाय छे. वळी अन्य चार नामो कार्यने आश्रयीने कहेला छे. वायुने चोमेर हणवाथी परिघ-अर्गला, वायुनो परिघनी माफक परिघ ते वातपरिघ, तथा वायुने परिघनी : माफक क्षोभ करे छे-मार्गने रोके छे ते वातपरिपक्षोभ, अथवा वायुस्वरूप ज परिघने जे रोके छे ते वातपरिपक्षोम. पाठांतरबडे वातपरिक्षोभ छे. क्यांक देवपरिघ अने देवपरिक्षोभ आ नामो प्रथमना बे पदना स्थानमा कहेवाय छे. देवोने अरण्यनी माफक बलवान देवोना भयथी नाशवानुं स्थान होवाथी जे तमस्काय ते देवारण्य छे. सागर विगेरे संग्रामना व्यूह(रचना)नी जेम दुःखपूर्वक गमन करवा योग्य होवाथी जे देवोना व्यूह ते देवव्यूह. तमस्कायना वरूपर्नु प्रतिपादन करवा माटे KXXXXXXXXXXXXxxxxxxxx KOKXXXXXXX S४०१ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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