SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥३३७॥ KXXXXX xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx तेमां उन्नतरूप (वृक्ष), आकार अने अवयवादिना सौंदर्यथी (५), गृहस्थ पुरुष संबंधे पण एमज जाणवू. प्रव्रजित तो संविग्न- ४ स्थान साधुना वेपने धरनार (६), बोधपरिणामनी अपेक्षावाळा चार (मन, संकल्प, प्रज्ञा अने दृष्टि) सूत्रो छे. तेमां जात्यादि गुणोवडे काध्ययने अथवा ऊंचाईवडे उन्नत, स्वभावे औदार्यादि युक्त मनवाळो. एवी रीते बीजा पण त्रण भंगो जाणवा. 'एव'मिति०संकल्प उद्देशः१ विगेरे सूत्रोमां चोभगीनो अतिदेश लाघव माटे सूत्रकारे कर्यो छे. संकल्पविकल्प एटले विशेष विचार. आ उन्नतपणुं औदार्य उन्नतादि विगरेथी युक्तपणाए अथवा सत्पदार्थना विषयपणावडे छे (८), श्रेष्ठ ज्ञान ते प्रज्ञा अर्थात् सूक्ष्म अर्थ- विवेचकपणुं, प्रज्ञान सू० २३६ श्रेष्ठपणुं अविसंवादि-अविरोधपणाएछे (९), दर्शन-दृष्टि-चक्षुजन्य ज्ञान अथवा नयनो अभिप्राय, तेनुं उन्नतपणुं तो अविसंवादिपणाए छ (१०), क्रियारूप परिणामनी अपेक्षावाळा त्रण सूत्रोमां शीलाचार-शील एटले समाधि, ते समाधिप्रधान आचार अथवा समाधिनो आचार-अनुष्ठान ते शीलवडे अथवा स्वभाववडे आचार. आनुं उन्नतपणुं तो निर्दपणपणाए छे, वाचनांतरमा तो शीलसूत्र अने आचारसूत्र भेदवडे कहेवाय छे अर्थात् जुदा छे. (११), व्यवहार परस्पर देवू-लेवु विगेरे अथवा विवाद, आर्नु उन्नतपणुं तो प्रशंसायोग्यपणाए छे. (१२), पराक्रम-उद्यमविशेष अथवा वीजा-शत्रुओर्नु आक्रमण करवु ( दवावq ), तेर्नु उन्नतपणुं तो अपराजितपणाए अने सारा विषयपणाए छे. (१३), उन्नतथी विरुद्ध(प्रणतपणुं) सर्वत्र विचार. 'एगे पुरी'त्यादि. आ मन विगेरे चौभंगीना सात सूत्रोमा एक ज पुरुषजातनो आलावो जाणवो. प्रतिपक्ष-बीजो पक्ष ( दृष्टांतभूत वृक्ष ) सूत्र नथी अर्थात् पराक्रम पर्यंत न कहेवू, केम के दृष्टांतभूत वृक्षोने विषे उपमेय पुरुषना धोनो (मन विगेरेनो) असंभव छ. 18 'उज्जु'त्ति० ऋजु-पूर्वनी माफक कोईक सरल वृक्ष तथा ऋजु-अविपरीत स्वभाव, उचितपणावडे फलादिना x॥ ३३७॥ KK XXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy