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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx वत्ता ह४ (१२), एवामेव चत्तारित्थीओ पं० तं-वामा णाम ह ४ (१३), चत्तारि वायमंडलिया पं० तं०-वामा णाममेगा वामावत्ता ४ (१४), एवामेव चत्तारित्थीओ पं० त०-वामा णाममेगा वामावत्ता ४ (१५), चत्तारि वणसंडा पं० तं०-वामे नाममेगे वामावत्ते ४ (१६), एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-वामे णाममेगे वामावत्ते ४ (१७) । सू० २८९ __ मूलार्थः-चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईक पोताना आत्माने दुष्ट प्रवृत्तिथी अटकावे छे परंतु बीजाने | अटकावतो नथी, कोईक बीजाने दुष्ट प्रवृत्तिथी अटकावे छे पण पोताना आत्माने अटकावतो नथी, कोईक पोताना आत्माने अने बीजाने पण दुष्ट प्रवृत्तिथी अटकावे छे तेमज कोईक पोताने के परने दुष्ट प्रवृनिथी अटकावतो नथी (१), चार प्रकारना मार्ग कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईएक मार्ग शरूआतमा पण सरल अने अंतमां पण सरल छे, कोईएक मार्ग शरूआतमां सरल छे पण पछी चक्र छे, कोईएक मार्ग शरूआतमां वक्र पण पछी सरल छे तेमज कोई एक मार्ग शरूआतमां पण वक्र अने पछी पण वक्र छे (२), ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईएक पुरुष प्रथम-पूर्वकाळमां सरल छे अने पछी पण सरळ छे, कोईक प्रथम सरल अने पछी वक्र छे, कोईक प्रथम वक्र अने पछी सरल छ तथा कोईक प्रथम वक्र अने पछी पण वक्र छ (३), चार प्रकारना मार्ग कहेल छे, ते आ प्रमाणे-कोईक मार्ग आदिमा क्षेम-उपद्रव रहित अने पछी पण क्षेम छे, कोईक मार्ग आदिमां क्षेम छ पण पछी अक्षेम छे, कोईक मार्ग आदिमां अक्षम पण पछी क्षेम छे xxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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