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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्था XXXXXXX नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ४०१॥ ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः २ महाप्रति ०२८५ ट्रिया पुढवी, पुढविपइट्रिया तसा थावरा पाणा ४। सू० २८६, चत्तारि पुरिसजाता पं० तं०-तहे नाममेगे, नोतहे नाममेगे, सोवत्थी नाममेगे, पधाणे नाममेगे ४ (१) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-आयंतकरे नाममेगे णो परंतकरे १ परंतकरे णाममेगे जो आतंतकरे २ एगे आतंतकरेवि परंतकरेवि ३ एगे णो आततकरे णो परंतकरे ४ (२) चत्तारि पुरिसजाता पं० २०-आतंतमे नाममेगे नो परंतमे परंतमे नाममेगे नो आयंतमे ४ (३) चत्तारि पुरिसजाया पं० त०-आयंदमे नाममेगे णो परंदमे ४ (४)। सू० २८७, चउविधा गरहा पं० २०-उवसंपज्जामित्तेगा गरहा, वितिगिच्छामित्तेगा गरहा, जंकिंचिमिच्छामीत्तेगा गरहा, एवंपि पन्नत्तेगा गरहा। स० २८८ मूलार्थ:-साधुओने तथा साध्वीओने चार महापडवाने विषे स्वाध्याय करबो कल्पे नहिं. ते आ प्रमाणे -आषाढ सुदि पूनम पछीना पडवामां, कार्तिक सुदि पूनम पछीना पडयामा, इंद्रमह-आसो सुदि पूनम पछीना पडवामां तथा सुग्रीष्म-चैत्र सुदि पूनम पछीना पडवामां १, साधुओने तथा साध्वीओने चार संध्याने विषे स्वाध्याय करवो कल्पे नहिं, ते आ प्रमाणे-प्रथम संध्यासूर्योदय* वेलाथी एक घडी प्रथम अने एक घडी पछी, पश्चिम संध्या-सूर्यास्त समयथी एक घडी प्रथम ने एक घडी पछी, *केटलाकनो अभिप्राय एवो छे के प्रथम संध्या सूर्योदय वेलाथी बे घडी अगाउ लेवी केम के टीकामा "अनुदिते सूर्ये पाठ छे. बाकीनी त्रण संध्या एक घडी आगल पाछल लेवो परंतु अहिं तो टवाने अनुसारे हकीकत लखेल छे. ८८ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx YyxxxXXXX. For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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