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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX जागरिकावडे जागता होय छे ३ तेमज प्रासुक, एषणीय, उंछ-थोडूं थोडुं भक्तपानादि ग्रहणरूप सामुदानिकी भिक्षानी सारी ते गवेषणा करनार होय छे ४. उपर्युक्त चार कारणवडे साधुने अथवा साध्वीओने यावत् केवलज्ञान-दर्शन उत्पन्न थाय छे.(सू०२८४) टीकार्थ:-'चत्तारि पुरिसे'त्यादि. सुगम छे. विशेष ए के-कृश-पातळं शरीर. ते पूर्व अने पछी पण कश ज अथवा भावथी हीन सत्व [बळ] विगेरेपणाथी कृश, वळी शरीरादिवडे कृश, एवी रीते दृढ-मजबूत पण कृशथी विपरीतपणे जाणवो १. पूर्व सूत्रना अर्थथी विशेष-शरीरवडे आश्रित ज आ वीजुं सूत्र छ, तेमां भावथी कृश विगैरे जाणवू, बीजुं सुगम छे २. चतुर्भगीवडे कृशना ज्ञानोत्पादने कहे छे-'चत्तारीत्यादि० स्पष्ट छे. विशेष ए के-विचित्र तपस्यावडे भावित कृश शरीरबालाने शुभ परिणामना संभववडे तद्-ज्ञानावरण विगेरेना क्षयोपशमादि भावथी ज्ञान अने दर्शन, अथवा ज्ञाननी साथे दर्शन ते ज्ञानदर्शन, ते छद्मस्थ संबंधी ज्ञान अथवा केवली संबंधी ज्ञान, ते उत्पन्न थाय छे. दृढ शरीरवाळाने नथी थतुं केम के अत्यंत मोहवडे तेने (शरीरने ) पुष्ट करेल होवाथी तथाविध शुभ परिणामना अभाववडे क्षयोपशमादिनो अभाव होय छे, आ प्रथम भंग. तथा संघयणविशिष्ट अल्प मोहवाला दृढ शरीरने ज ज्ञान-दर्शन उत्पन्न थाय छे, केम के स्वस्थ शरीर होवाथी मननी स्वस्थतावडे शुभ परिणामना क्षयोपशमादि भाव होय छे परंतु कृश शरीरवालाने चित्तनी अस्वस्थताथी उत्पन्न न थाय, ते बीजो भंग. कृश अथवा दृढ शरीरवालाने ज्ञान तथा दर्शन उत्पन्न थाय छे, कारण के विशिष्ट संघयण सहित अल्प मोहवालाने शुभ परिणामपणाथी बने रीते थाय छे पण कृशत्व अने दृढत्व प्रत्ये अपेक्षा नथी, आ त्रीजो भंग, चोथो भांगो स्पष्ट छे. मद संघयणी अने बहु मोहवाला कृश के दृढ शरीरीने ज्ञान तथा दर्शन उत्पन्न न थाय. (सू० २८३) हमणा ज्ञानदर्शननो उत्पाद कह्यो, हवे तेनो व्याघात कहेवाय छ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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