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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie DXOXOXOXOMOKOKOMOXOXOXOoxxxxxxxxXOKOKOKOKOOKxoxy सागघयादावादो [वो ? ], पक्कापको य होइ निव्वावो। आरंभ तित्तिराई, गिट्ठाणं जा सयसहस्सं ॥७९॥ भावार्थ उपर मुजब छे. भोजनकथामां आ प्रमाणे दोषो छआहारमंतरेणवि, गेहीओ जायए सइंगालं। अजिइंदिय ओदरिया-वाओ उ अणुन्नदोसा य ॥८॥ आहार कर्या विना पण आसक्तिवडे अंगारदोष थाय छे. आ साधु जीतेंद्रिय नथी, पेटभरा छे एम लोकमां अपवाद थाय छे अने दोषनी परंपरा थाय छे अर्थात् आहारनी गृद्धिथी एषणाना दोष न टाली शके. मगधादि देशमा विधि-भोजन, मणि अने भूमिका विगैरेनी रचना अथवा अमुक दशमां प्रथम अमुक भोजन खवाय छे. आवी जे कथा अर्थात् देश देशनी भोजन विगैरेनी विधिनी जे कथा करवी ते देशविधिकथा, एम ज बीजी कथाओमां पण जाणवं. विशेष ए के-अमुक देशमा धान्यनी उत्पत्ति, गढ, कूवा विगेरे देवकुल अने महेल विगेरेनी जे कथा ते देशविकल्पकथा, छंद-गम्य अने अगम्यनो विभाग, जेम लाट देशमां मामानी पुत्री गम्य-परणवा योग्य थाय छे, वीजा देशमा अगम्य-परणवा योग्य नथी, आवी जे कथा ते देशच्छंदकथा, नेपथ्य-स्त्री अने पुरुषने तो स्वाभाविक वेष अने शोभाना निमित्तरूप वेष, तेनी जे कथा ते देशनेपथ्यकथा. आ कथामा दोषो आ प्रमाणे होय छेरागद्दोसुप्पत्ती, सपक्खपरपवखओ य अहिगरणं । बहुगुण इमोत्ति देसो, सोउं गमणंच अन्नेसिं ॥८१॥ KXXXXXXXXXXXXXXXKKKKKIKKIKKKKAKKAL For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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